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पुस्तकें ज्ञान की संवाहक इनके बिना सभ्य समाज की कल्पना करना भी मुश्किल -कान्ति शुक्ला


भोपाल। 'पुस्तकें ज्ञान की संवाहक होती हैं, इनके बिना सभ्य समाज की कल्पना करना भी मुश्किल है, पुस्तक पख़वाड़े का आयोजन पुस्तक केंद्रित चर्चा का अभिनव प्रयोग है, इससे जिन कृतियों को पाठक पढ़ नहीं पाता उससे भी उनका परिचय हो जाता है और वह अपनी पसंद की कृति का चयन कर सकता है। 'यह उदगार हैं वरिष्ठ साहित्यकार कान्ति शुक्ला के जो लघुकथा शोध केंद्र समिती द्वारा आयोजित पुस्तक पख़वाड़े के आठवें दिवस सत्र की अध्यक्षता करते हुए बोल रही थी।'

आयोजन में वरिष्ठ साहित्यकार कर्नल डॉ. गिरिजेश सक्सेना की तीन महत्वपूर्ण कृतियों पर विमर्श हुआ ।सर्वप्रथम उनके द्वारा लिखित 'तीसरा तांडव '(लघुकथा संग्रह) पर विमर्श में भाग लेते हुए चित्रा राघव राणा ने कहा की कृति में सम्मिलित लघुकथाएं भावना प्रधान हैं, इसमें भाषा, कथ्य और शिल्प पीछे रह जाते हैं, लघुकथाओं में पाठकों से जुड़ने की शक्ति है।'

दूसरी कृति 'तुणीर' (व्यंग्य कविता संग्रह ) पर चर्चा करते हुए वरिष्ठ व्यंग्यकार और समीक्षक राजेंद्र गट्टानी ने कहा की -'रचनाकार जिन तीरों से आहत हुआ है, उन तीरों को कविताओं के रूप में अपने तुणीर में सहेजा है, भले इन कविताओं में छंद का आभाव है परन्तु भाव का प्रबल। प्रभाव है इन कविताओं में व्यंग्य की पैनी धार है मार है |'

आयोजन में रचनाकार की तीसरी कृति 'पतझड़ के फूल' (काव्य संग्रह) पर समीक्षक शेफालीका श्रीवास्तव ने अपनी बात रखते हुए कहा की -'यह कवितायेँ विचलित हृदय की भावाभिव्यक्ति हैं, इनमें विरह की पीड़ा है, निराशा है साथ ही सानिध्य का सुख और मिलन की आशा भी है, यानि पतझड़ में भी बसंत और बसंत में भी पतझड़ का भाव निहित है।'

इन कृतियों पर वरिष्ठ आलोचक प्रो.बी. एल. आच्छा (चेन्नई) एवं डॉ. मिथिलेश अवस्थी (नागपुर)ने भी अपने महत्वपूर्ण विचार रखे। कार्यक्रम में सतीश चंद्र श्रीवास्तव ने स्वागत उदबोधन दिया, कार्यक्रम का सफल संचालन वरिष्ठ साहित्यकार गोकुल सोनी ने किया। कार्यक्रम के अंत में केंद्र की ओर से सरिता बाघेला ने उपस्थित जनों का आभार प्रकट किया, कार्यक्रम में बड़ी संख्या में पुस्तक प्रेमी साहित्यकार और पाठक उपस्थित थे।

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