भोपाल। 'पुस्तक परिचर्चा पुस्तक पढ़ने की संस्कृति के विकास में सहायक होती है, अपने समकालीन समय को साहित्य में रेखांकित करना अपने समय का इतिहास लेखन भी है।' यह उदगार हैं वरिष्ठ लघुकथा लेखक आलोचक डॉ. बलराम अग्रवाल के जो लघुकथा शोध केंद्र समिति द्वारा आयोजित पुस्तक पख़वाड़े के तेरहवें दिवस पुस्तक विमर्श आयोजन की अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे।
आयोजन में वरिष्ठ साहित्यकार अशोक जैन की कृति 'बाल्य घर से नेक सदन तक' (आत्मकथा) पर चर्चा में भाग लेते हुए समीक्षक सुनीता प्रकाश ने लेखक की , चुनौतियों जीवन के संघर्षो पर साहस से होंसले की विजय गाथा बताया, अशोक जैन की दूसरी कृति 'कहे जैन कविराय' (कुंडलिया संग्रह)पर समीक्षा करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार अशोक धमेनियाँ ने कहा की कुंडली संग्रह की कुंडलियाँ संदेशपरक हैं हमें संस्कार व शिक्षा देकर अपनी परम्पराओं से जोड़ती हैं।
कार्यक्रम में तीसरी कृति 'जीवन है तो संघर्ष है' (लघुकथा संग्रह) लेखक -डॉ. रमेश यादव, मुंबई पर समीक्षा करते हुए समीक्षक श्रीमती पुष्पा कुमारी ने संग्रह की लघुकथाओं को आसपास से अपने परिवेश से जुड़ी, समाज को सकारात्मक संदेश देने वाली लघुकथाएं बताया। कार्यक्रम का सफल संचालन सतीशचंद्र श्रीवास्तव ने किया।
आयोजन में लेखकों ने अपनी लेखन यात्रा से जुड़े विचार साझा किये, कार्यक्रम। में केंद्र की निदेशक कांता रॉय ने भी अपने विचार रखे, कार्यक्रम के अंत में वरिष्ठ साहित्यकार गोकुल सोनी ने आभार प्रकट किया, कार्यक्रम में बड़ी संख्या में पुस्तक प्रेमी साहित्यकार और पाठक उपस्थित थे।
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