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नवगीत: दिशा और दिशा राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं नवगीत कृतियों का लोकार्पण समारोह

इक्कीसवीं सदी में नवगीत ने नई करवट ली है और शोध के नए गवाक्ष खुले हैं

काशी । इक्कीसवीं सदी में नवगीत ने नई करवट ली है और शोध के नए गवाक्ष खुले हैं। डॉ. शम्भुनाथ सिंह ने पूर्व में अर्द्धशती का सम्पादन भी किया था जिससे हिन्दी साहित्यकारिता की मुख्य धारा में नवगीत की जोरदार उपस्थिति दर्ज हुई। वर्तमान में नवगीत सर्वसमाज में अपनी गहरी पैठ बना चुका है इस सन्दर्भ में वरिष्ठ नवगीतकार शिवानन्द सिंह 'सहयोगी' द्वारा सम्पादित व प्रकाशित नवगीत अर्द्धशतक भाग-एक का संपादन समयानुरूप,महत्वपूर्ण व प्रसंशनीय है यह उद्‌गार 19 जनवरी-2025, रविवार को संगोष्ठी के मुख्य अतिथि व सूरत (गुजरात) से पधारे प्रबुद्ध समीक्षक श्री गंगा प्रसाद शर्मा 'गुणशेखर' ने राजकीय जिला पुस्तकालय, अर्दली बाजार के सभागार में उपस्थित साहित्यविदों व सृजनाधर्मियों के मध्य 'नवगीत अर्द्धशतक भाग-एक' एवं 'एक मु‌ट्ठी भात' नवगीत संग्रह कृतिकार व सम्पादक श्री सहयोगी की कृतियों के विमोचन करते हुए व्यक्त किया।

ख्यात साहित्यकार व समीक्षक डॉ. रामसुधार सिंह के संचालन में आयोजित कार्यक्रम का प्रारम्भ मंचासीन अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन तथा माँ शारदा के चित्र पर माल्यार्पण एवं गीतकार शरद श्रीवास्तव 'शरद' की सरस्वती वन्दना से हुआ तदुपरान्त मंचासीन अतिथियों एवं सभागार में उपस्थित साहित्यिक समाज के प्रति स्वागत वाचन श्री कंचन सिंह परिहार (रा० जिला पुस्तकालयाध्यक्ष) ने किया और मंचासीन अतिथियों का माल्यार्पण व उत्तरीय द्वारा सम्मान श्री शिवानन्द सिंह 'सह‌योगी, श्री राजीव सिंह, श्री संतोष कुमार 'प्रीत, प्रसन्नवदन चतुर्वेदी अन्ध, शिवकुमार पराग ने किया।

इस अवसर पर सुविख्यात नवगीतकार एवं आयोजन के अध्यक्ष श्री बुद्धिनाथ मिश्र ने अपने सम्बोधन में कहा कि सहयोगी जी द्वारा संपादित 'नवगीत अर्द्धशतक भाग-एक" वाराणसी से ही कीर्तिशेष डा. शम्भुनाथ सिंह द्वारा सम्मादित नवीन दशक परम्परा की नवीनतम उपलब्धि है। नवगीत विधा को आगे बढ़ाने व समृ‌द्ध करने में काशी का वर्चस्व आज भी कायम है यह अत्यन्त सुमदायक है।

सारस्वत अतिथि डॉ चनुभाल सुकुमार ने अपने उद्‌बोधन में काशी में नवगीत की सामान्य परम्परा रही है बताते हुए कहा कि नवगीत के इतिहास पर यदि सम्यक्‌ शोध किया जाय तो इसको एक ओर निराला से पहले प्रसाद से जुड़ती है इस कड़ी में 'नवगीत अर्द्धशतक भाग-एक' के लोकार्पण का आयोजन काशी में किया जाना एक ऐतिहासिक उत्सव है। इस अवसर पर मंचासीन अतिथियों सर्वश्री गणेश गम्भीर मीरजापुर, राजा अवस्थी कटनी एवं भुवनेश्वर दुब मीरजापुर ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में नवगीत को हिन्दी काव्य की एक मजबूत उल्लेखनीय विधा की संज्ञा प्रदान की और श्री शिवानन्द सिंह 'सहयोगी' द्वारा सम्पादित कृति एवं उनके नवगीत संग्रह 'एक मुट्‌ठी भात' की प्रशंसा करते हुए उन्हें साधुवाद दिया।

आयोजन में प्रो. श्रद्धानन्द, डॉ. राम अवतार पाण्डेय ने भी अपने महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किये और लोकार्पित इन कृतियों को प्रशंसा करते हुए श्री 'सह‌योगी' को इस हेतु बधाई दी। लोकार्पित कृतियों के विषय में अपना मंतव्य रखते हुए साहित्यभूषण वरिष्ठ नवगीत‌कार श्री 'सहयोगी' ने कहा कि एक लम्बे अरसे से मेरा जुड़ाव नवगीत से है जिससे मुझे नित्य ऊर्जा प्राप्त होती है और मैं स्वयं को नवगीत का एक राजमिस्त्री मानता हूँ, ठेकेदार नहीं। मैं महसूस करता हूँ कि नवगीत की ठेकेदारी ने नवगीत को बहुत हानि की है। इससे बचना होगा नवगीत के नवगीतकारों को। पुस्तकों का महत्व कभी भी कम नहीं हो सकता। यह संकलन अपने नये कलेवर में नवीन प्रसंगों सहित पाठकों से संवाद करता रहेगा। 

कार्यक्रम में उपस्थित काशी और काशी के अतिरिक्त अन्य जनपदों से पधारे गणमान्य नवगीतकारों एवं साहित्यकारों की वृहद उपस्थिति के मध्य सम्पन्न हुए आयोजन का समापन काव्य पाठ से हुआ जिसमें श्री अशोक सिंह, शिवकुमार पराग, महेन्द्र अलंकार सूर्यप्रकाश मिश्र, डॉ. सविता सौरभ श्री प्रसन्नवदन चतुर्वेदी, डाॅ. जयप्रकाश भिश्द, अभिनवअरुण, गौतम अरोड़ा 'सरस, सन्तोष कुमार प्रीत आदि के गीत पाठ एवं श्री शिवानन्द सिंह सहयोगी के धन्यवाद एवं कंचन सिंह परिहार के विशेष आभार संबोधन के बाद समाप्त हुआ।

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