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सूरज कोहरे में छिपा,धूप हुई काफूर -कवि अमृत


भोपाल। 'सूरज कोहरे में छिपा, धूप हुई काफूर,शीत लहर चाबुक लिये घूम रही मगरूर। जैसे ही यह काव्य पंक्तियाँ कवि गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार घनश्याम मैथिल 'अमृत' ने पढ़ी पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। अवसर था रेल साहित्य परिषद भोपाल द्वारा आयोजित मासिक कवि गोष्ठी का, जो ओ. बी. सी. कार्यालय सडिपुका पश्चिम मध्य रेल सभागार में आयोजित थी।

कार्यक्रम में मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ववलन के बाद सुरेश कुशवाहा ने सुमधुर सरस्वती वंदना प्रस्तुत की, गोष्ठी में वरिष्ठ कवि संत कुमार मालवीय संत ने नए वर्ष के स्वागत में अपनी रचना पढ़ी -'नव वर्ष में नव प्रभात नव रश्मियां लिये' गोष्ठी में व्यंग्यकार सतीश श्रीवास्तव 'सागर' ने पढ़ा -'कैसा मुबारक नया साल, हर आँखों में एक सवाल।' कविता को भरपूर दाद मिली, इस क्रम को आगे बढ़ाया कवि वीरेंद्र बड़गैयाँ ने उन्होंने किसान की व्यथा कथा को अपनी कविता में प्रस्तुत किया। युवा कवि अनिल साकेत की पंक्तियाँ थी -'आई है छब्बीस जनवरी बन गणतंत्र निशानी',नीतिराज चौरे ने देश प्रेम की कविता में अमर शहीदों को नमन करते हुए पढ़ा -उनकी ताकत का मोल नहीं, उन वीर शहीदों को प्रणाम। गोष्ठी का सफल और सुमधुर संचालन कर रहे युवा कवि कुमार अखिलेश की इन पंक्तियों को खूब सराहा गया -'हर किसी का एक किस्सा और कहानी है, हर एक दरिया की अपनी रवानी है। कार्यक्रम में संस्थान के अनेक कविता प्रेमी श्रोता उपस्थित थे।

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