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अच्छी और सटीक आलोचना से लेखक अपने लेखन को बेहतर कर पाता है -अरुण अर्णव खरे

साहित्यकारों से जुड़कर ही रंगकर्मी अच्छी प्रस्तुतियां दे सकते हैं -राजीव वर्मा

बढ़ते कथाक्रम के साथ जो कहानी लेखक पाठक को मानसिक यात्रा करा सके, वही कहानीकार सफल होता है -गोकुल सोनी


भोपाल । सृजन की सटीक आलोचना उसे और सार्थक बनाने की दिशा में एक सटीक कदम होता है, लघुकथा शोध केंद्र समिति, भोपाल द्वारा पुस्तक पख़वाड़े के आयोजन में देश भर से आई उल्लेखनीय पुस्तकों पर चर्चा कर महत्वपूर्ण कार्य किया जा रहा है। यह उदगार हैं वरिष्ठ साहित्यकार अरुण अर्णव खरे के थे जो लघुकथा शोध केंद्र के पुस्तक पख़वाड़े के चौथे दिवस की अध्यक्षता कर रहे थे। डॉ. राधेश्याम भारतीय की कृति 'नील गगन में उड़ते पंछी '(बाल कविता संग्रह) मुज़फ्फर इक़बाल सिद्दीकी की कृति 'युगान्तर '(कहानी संग्रह ) एवं संजय आरज़ू की कृति 'एन आई आर बेटा ' (कहानी संग्रह) जिनपर क्रमशः डॉ.अशोक बैरागी, वरिष्ठ साहित्यकार, समीक्षक गोकुल सोनी, डॉ. शबनम सुल्ताना ने अपनी बात रखी।

इस अवसर पर वरिष्ठ रंगकर्मी राजीव वर्मा ने विशिष्ठ वक्ता के रूप में अपनी बात रखते हुए रंगकर्मियों से साहित्यकारों से जुड़ने की अपील की व साहित्यकारों से अच्छे मंचन योग्य नाटक लिखने का अनुरोध किया । कार्यक्रम का सफल संचालन अशोक धमेनिया ने किया।

श्री गोकुल सोनी ने श्री मुजफ्फर इकबाल सिद्दीकी की कहानी की पुस्तक युगांतर की समीक्षा करते हुए कहा कि युगांतर की कहानियों का भावपक्ष प्रबल है। ये कहानियां समाज की आजबके समय की समस्याओं पर केंद्रित हैं। वास्तव में कथा वही सफल और प्रभावी होती है जिसमें पाठक कथा के बढ़ते क्रम के साथ मानसिक यात्रा करता चलता है।

शोध केंद्र की अध्यक्ष कांता राय ने कहा कि शोध केंद्र के इस पुस्तक चर्चा कार्यक्रम की पूरे देश में चर्चा होती है एवं विदेशों से भी कई रचनाकार इसमें भागीदारी करते हैं। आज भी जितनी बड़ी संख्या में रचनाकार देश विदेश से जुड़े हैं, उसे देखकर मैं अभिभूत हूं।

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