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पत्र लेखन अपने समकाल का जीवंत दस्तावेज साहित्यकार पत्र लेखन विधा को पुनर्नजीवित करें -विजय कुमार तिवारी


भोपाल। 'साहित्यकारों के मध्य पत्र लेखन की हमारे यहां। समृद्ध परम्परा रही है, साहित्यकारों के पत्र समकालीन समय का जीवंत दस्तावेज होते हैं, साहित्यकारों को विलुप्त होती इस परम्परा को पुनर्नजीवित करना चाहिए।' यह उदगार हैं वरिष्ठ साहित्यकार विजय कुमार तिवारी,भुवनेश्वर (उड़ीसा ) के जो लघुकथा शोध केंद्र समिति भोपाल द्वारा आयोजित पुस्तक पखावडे के चौदहवें सत्र की अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे।

पुस्तक विमर्श के इस आयोजन में साहित्यकार अरुण अर्णव खरे के उपन्यास 'पानी का पंचनामा ' में विमर्शकार वरिष्ठ साहित्यकार अश्विनी कुमार दुबे ने इस उपन्यास को अपने समय का ऐसा दस्तावेज बताया जो भ्रस्टाचार पर कड़ा प्रहार करता है, सरकारी महकमे में जिम्मेदार पदों पर बैठे अयोग्य अधिकारी किस तरह से आम आदमी के अधिकारों और शासन के धन और पद का दुरूपयोग करते हैं का रोचक चित्रण किया है। अरुण जी की दूसरी कृति 'चयनित कहानियां' पर चर्चा में भाग लेते हुए वरिष्ठ साहित्यकार और समीक्षक गोकुल सोनी ने संग्रह की कहानियों में देशज माटी की गंध का अहसास किया, उन्होंने कहा की लेखक ने अपने पात्रों का चयन बड़ी सावधानी से किया है यह कहानियां आत्मविश्वास और संघर्ष का प्रतीक हैं जो अपने कालखंड का जीवंत दस्तावेज हैं। पुस्तक चर्चा के इस आयोजन में तीसरी कृति थी 'मतलब अपना साध रे वन्दे' (व्यंग्य संग्रह) लेखक सतीशचंद्र श्रीवास्तव इस कृति पर वरिष्ठ साहित्यकार और समीक्षक मधुलिका सक्सेना ने अपने विचार रखते हुये कहा की संग्रह के व्यंग्य समाज में व्याप्त विसंगतियों पर कड़ा प्रहार करते हैं, उनकी भाषा नुकली व धारदार है, यह समकालीन व्यंग्य की प्रतिनिधि व्यंग्य रचनाएँ हैं ।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में मंचस्थ अतिथियों और उपस्थित साहित्यकारों का स्वागत केंद्र के सचिव घनश्याम मैथिल अमृत ने किया।कार्यक्रम का सफल और प्रभावी संचालन मुजफ्फर इक़बाल सिद्दीकी ने किया, कार्यक्रम में लेखकद्वय ने अपनी सृजन यात्रा पर चर्चा करते हुए,समीक्षित कृतियों पर चर्चा करने वाले समीक्षकों व लघुकथा शोध केंद्र का आभार प्रकट किया,कार्यकम में केंद्र की ओर से उपस्थित अतिथियों और श्रोताओं का आभार सेफालिका श्रीवास्तव ने व्यक्त किया। कार्यक्रम में देश और दुनियां के अनेक साहित्यकार एवं पुस्तक प्रेमी उपस्थित थे।

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