भोपाल में साहित्य, कला और संस्कृति की आकाशगंगा के जगमगाते सितारों के बीच उन्हें खोजने के लिए आपको किसी टेलिस्कोप की जरुरत नहीं पड़ेगी। कला जगत में इस सृजनात्मक सितारे का आभा मंडल इतना चमकदार है कि बरबस ही आँखें उन्हें सहज भाव से ढूँढ लेती हैं। जी हाँ, यहाँ बात हो रही है कलाओं के विविध स्वरुप को हर साँस के साथ जीने वाले उस शख्स की जिसने अपनी ज़िन्दगी के बेहतरीन साठ साल कलाओं के मधुबन में गुनगुनाते भँवरे की मानिंद गुजार दिये। आप चाहें तो उसे इस मधुबन का बागबान भी कह सकते हैं, जिसने क्यारियों में रंग-बिरंगे असंख्य फूल खिलाने की कभी कोई तनख्वाह नहीं ली।
80 वर्षीय पं. सुरेश ताँतेड़ ने गायन-वादन की अभिरुचि के चलते 1960 के दशक में पहले अभिनव कला परिषद् की तथा 1970 में मधुबन की स्थापना की। इन संस्थाओं द्वारा आयोजित शास्त्रीय नृत्य, गीत-संगीत के कार्यक्रम न केवल बेहद लोकप्रिय हुए बल्कि इन आयोजनों ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा अर्जित की है। शास्त्रीय संगीत का शायद ही कोई ऐसा कलाकार हो, जिसने अभिनव कला परिषद् के प्रतिष्ठित मंच पर प्रस्तुति देकर अपना और अपनी कला का मान न बढ़ाया हो।
शास्त्रीय संगीत की महफ़िल सजाने का जूनून
चाहे वे पं. जसराज हों या भीमसेन जोशी.. गिरिजा देवी हों या किशोरी अमोनकर.. कुमार गन्धर्व हों या बाला साहब पूंछवाले.. गोस्वामी गोकुलोत्सव महाराज हों या नारायण राव व्यास.. जितेन्द्र अभिषेकी हों या शोभा गुर्टू.. परवीन सुल्ताना और दिलशाद खाँ हों अथवा उस्ताद नसीर अहमद खाँ.. पुरुषोत्तमदास जलोटा और उनके सुपुत्र अनूप जलोटा से लेकर राजन साजन मिश्र की जोड़ी हो या उमाकांत रमाकांत गुंदेचा की ध्रुपद गायकी.. हर दौर में अभिनव कला परिषद् की संगीत सभाओं में रसिक श्रोताओं ने उन्हें बड़े चाव से सुना।
भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान सितारों- उस्ताद बिस्मिल्ला खाँ (शहनाई) पं. रवि शंकर, उस्ताद हलीम ज़ाफर खान, उस्ताद विलायत खान (सितार) पं. हरिप्रसाद चौरसिया, रोनू मजूमदार (बाँसुरी) वी.जी. जोग, डॉ. एन. राजम (वायलिन) उस्ताद जाकिर हुसैन (तबला) पं. शिवकुमार शर्मा, ओमप्रकाश चौरसिया, भजन सोपोरी, तरुण भट्टाचार्य (संतूर) पं. विश्व मोहन भट्ट, सलिल भट्ट, ब्रज भूषण काबरा (मोहन वीणा) डॉ. अली अकबर खाँ, उस्ताद अमज़द अली खाँ, शरण रानी, रहमत अली खाँ (सरोद) की अनमोल स्वर लहरियों ने अभिनव कला परिषद् के मंच को नई ऊंचाई दी। आप नाम लेते जाइये, कोई नहीं छूटा, जिसने इस मंच पर अपनी सृजनात्मक प्रतिभा से प्रेक्षकों को सम्मोहित न किया हो।
अभिनव कला परिषद् के मंच पर सजी गीत-ग़ज़ल की महफ़िल में शीर्ष ग़ज़ल गायकों- बेगम अख्तर, तलत महमूद और शोभा गुर्टू से लेकर राजेंद्र मेहता- नीना मेहता, जगजीत सिंह- चित्रा सिंह, पंकज उधास, ए. हरिहरन, अनूप ज़लोटा, पीनाज मसानी, तलत अज़ीज़, चन्दन दास, राजकुमार- इन्द्राणी रिज़वी, अहमद हुसैन- मोहम्मद हुसैन तक.. और पार्श्व गायकों में महेंद्र कपूर, सुधा मल्होत्रा, कृष्णा कल्ले, अनुराधा पौडवाल, सुषमा श्रेष्ठ से लेकर उदित नारायण, अलका याग्निक, कविता कृष्णमूर्ति, रूपकुमार राठौड़,सारिका सिंह तक.. सभी ने शाम-ए-ग़ज़ल का खूब समां बाँधा।
शास्त्रीय नृत्य के आयोजनों में सितारा देवी, बिरजू महाराज, गोपी कृष्ण, लीला सेमसन, पुरु दाधीच से लेकर शाश्वती सेन, कमलिनी- नलिनी, जयंती माला- प्रियमाला, शाम्भवी शुक्ला ने परिषद् के मंच को सुशोभित किया है। मालिनी अवस्थी और प्रहलादसिंह टिपाणीया सरीखे लोक गीतों के शीर्ष कलाकारों ने भी अपनी प्रस्तुतियों से लोकरंजन को सींचा है। आप नाम गिनते-गिनते थक जाएँगे, पर सूची आधी-अधूरी रहेगी।
पिछले 60 साल से परिषद् अपने सीमित साधनों और जन सहयोग से राजधानी में हर वर्ष चार त्रैमासिक संगीत समारोह ‘उत्सव गणतंत्र’ ‘वसंत उत्सव’ ‘बरखा महोत्सव’ और ‘युवा खोज’ निरंतर आयोजित करती आई है। अभी तक 400 से अधिक समारोह सफलतापूर्वक आयोजित किये जा चुके हैं, जिनमें 4 हजार से अधिक कलाकारों को अपनी प्रस्तुतियों से कला रसिकों का दिल जीतने का अवसर मिला है। परिषद् की संस्थागत सृजनात्मक यात्रा को मान्यता देते हुए मध्य प्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग ने वर्ष 2021 में ‘राजा मानसिंह तोमर राष्ट्रीय सम्मान’ से विभूषित कर गौरव बढ़ाया है।
परिषद् एक ओर जहाँ स्थापित नामचीन कलाकारों को ‘अभिनव कला सम्मान’ ‘अभिनव संगीत रत्न’ और ‘अभिनव शब्द शिल्पी अलंकरण’ जैसे सम्मान से नवाज़ती रही है, वहीं बाल एवं युवा प्रतिभाओं को ‘कल के कलाकार’ जैसा सम्मान प्रदान कर उनकी हौसला अफज़ाई करने में भी पीछे नहीं रही है। शास्त्रीय रागों पर आधारित राज्य स्तरीय युवा गायन प्रतियोगिता के विजेताओं को संस्था ने नकद पारितोषिक देने के बजाय तानपुरा, हारमोनियम और तबला जैसे वाद्य यंत्र पुरस्कार में देने का नवाचार अपनाया है।
‘कल्याणजी आनंदजी’ जैसी मशहूर फिल्म संगीतकार जोड़ी के आनंदजी भाई और सुप्रसिद्ध भजन गायक अनूप जलोटा भी संस्था से संरक्षक के रूप में जुड़े हुए हैं. दैनिक भास्कर समाचारपत्र समूह के अध्यक्ष (स्व.) श्री रमेशचंद्र अग्रवाल, परमाली वालेस के श्री सुभाष विट्ठल दास और स्वदेश समाचारपत्र समूह के प्रमुख श्री राजेन्द्र शर्मा की संरक्षक के बतौर मिली सरमायेदारी भी संस्था को खूब फली है। वर्षों तक मप्र लेखक संघ के अध्यक्ष रहे वरिष्ठ गीतकार डॉ. रामवल्लभ आचार्य भी संस्था के सक्रिय सहयोगियों में रहे हैं। अखिल भारतीय कला मंदिर के संस्थापक पं. गौरीशंकर शर्मा ‘गौरीश’ और ख्यात छायाकार कमलेश जैमिनी सहित ढेर सारे जाने-पहचाने चेहरे आपको उनकी टीम के सक्रिय सदस्य के रूप में प्रायः हर आयोजन में नज़र आएँगे।
‘मधुबन’ अभिनव कला परिषद् की ही एक सहोदरी संस्था है, जो हर साल गुरु पूर्णिमा पर ‘गुरु वंदना महोत्सव’ आयोजित कर कला और साहित्य के क्षेत्र में गुरु शिष्य परंपरा का मान बढ़ाती रही है। इसमें कला, साहित्य, संस्कृति और पत्रकारिता क्षेत्र के मूर्धन्य हस्ताक्षरों को ‘श्रेष्ठ कला आचार्य’ सम्मान से विभूषित किया जाता है।
मंच से परे रहकर, मंच की रौनक बढ़ाने का जज्बा
अभिनव कला परिषद् भोपाल की उन उँगलियों पर गिनी जाने वाली साहित्यिक सांस्कृतिक संस्थाओं में अग्रणी है, जिसने नवाबों के शहर में भारतीय कला और संस्कृति को समृद्ध कर उसके संरक्षण और विकास में अहम् भूमिका निभाई है। जिस संस्था का अपना कोई संस्थागत भवन न हो और न ही सरकारी अनुदान या वित्तीय संसाधन जुटाने के कोई नियमित स्त्रोत हों; ऐसी संस्था केवल व्यापक जनाधार से एकत्र असीम विश्वास की पूंजी के बल पर ही छह दशक से अधिक समय तक अपना अस्तित्व बनाये रखने में कामयाब हो सकती है।
पं. सुरेश ताँतेड़ के कुशल नेतृत्व में परिषद् ने वाकई यह अनूठा काम कर दिखाया है। वर्ष भर वे इन कार्यक्रमों की तैयारियों में जुटे रहते हैं। सुनियोजित कार्य योजना ही इन विशाल आयोजनों को अपार ख्याति दिलाती रही है। कार्यक्रमों के दौरान वे स्वयं मंच पर अपनी उपस्थिति से अक्सर बचते है। उनका पूरा ध्यान मंच और मंचेतर व्यवस्थाओं पर बना रहता है। चश्में से झाँकती उनकी आँखें हर छोटी बड़ी गतिविधि पर पैनी नज़र रखती हैं। निमंत्रण पत्र हो या कार्यक्रम की मुद्रित विवरणिका; मंच की सजावट हो या दर्शकों की बैठक व्यवस्था; साउंड सिस्टम, हार-फूल और गुलदस्ते से लेकर फोटोग्राफी/ वीडियोग्राफी, जलपान, भोजन, आमंत्रित कलाकारों को लाने-ले जाने, उनके ठहरने की माकूल व्यवस्था का पूरा ख्याल वे संजीदगी से करते हैं।
अटलजी के सभा से लौटी भीड़ अनूप जलोटा को सुनने उमड़ी
स्मृतियों के झरोखे को खोलते ही पं. सुरेश ताँतेड़ की आँखों में चमक आ जाती है। वे पूरे मनोयोग से आपको यादों की बारात में साथ लिए चलते हैं- “भोपाल में अनूप जलोटा का पहला कार्यक्रम हमने रवीन्द्र भवन परिसर में आयोजित किया था। संयोग से उसी दिन शाम को खिरनीवाला मैदान पर अटलजी (स्व. अटल बिहारी वाजपेयी) की आम सभा भी थी। जाहिर है अधिकांश लोगों की रूचि उस दिन अटलजी का भाषण सुनने में थी, अतः अनूप जलोटा को सुनने गिनती के लोग ही पहुंचे। आयोजक के रूप में हम असमंजस में थे कि श्रोताओं के अभाव में कार्यक्रम कैसे शुरू करें..?”
“..तभी मुझे एक युक्ति सूझी। मैंने आकाश साउंड सिस्टम वालों से (जिन्होंने दोनों जगह माइक और लाउड स्पीकर वगैरह की व्यवस्था की थी) कहा कि जैसे ही अटलजी का भाषण समाप्त हो वे रवीन्द्र भवन परिसर में लगे भोंगों (लाउड स्पीकर) का मुँह सड़क की ओर घुमा दें। यह युक्ति काम आई और अटलजी की आम सभा से लौट रही भीड़ हमारे कार्यक्रम में अनूप जलोटा को सुनने उमड़ पड़ी। हमारे लिये यह बड़े संतोष की बात थी। इसके दस पंद्रह दिन बाद ही अनूप जलोटा का विवाह हो गया, जिसमें हम भी शामिल हुए। उसने अपना हनीमून भोपाल में ही मनाया था..”
“1979 में हमने बीएचईएल के मुक्ताकाशी मंच पर एक अभिनव कार्यक्रम आयोजित किया। इसमें पहली बार श्रोताओं को विश्व प्रसिद्ध शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ और विख्यात वायलिन वादिका डॉ. (श्रीमती) एन. राजम द्वारा शहनाई और वायलिन वादन की जुगलबंदी सुनने का अद्भुत अवसर प्राप्त हुआ। इस आयोजन से प्राप्त सारी धनराशि हमने उस समय गुजरात में मोरवी के बाढ़ पीड़ितों की सहायतार्थ दान कर दी थी..”
लताजी को भोपाल न ला पाने की कसक
यह पूछने पर कि अभिनव कला परिषद् की छह दशक की दास्ताँ में ऐसी कौन सी हसरत अधूरी रही जो लाख चाहने पर भी पूरी न हो सकी; वे तपाक से बताते हैं- “लताजी (स्व. लता मंगेशकर) को भोपाल न ला पाने का अफ़सोस आज भी सालता है। हालाँकि कई बार उनसे बम्बई में उनके घर जाकर मिलने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। ‘सुर सिंगार संसद’ के कार्यक्रम में भी कई बार उनसे भेंट हुई। पर उन्हें भोपाल लाने में कामयाबी नहीं मिली..”
पैर छूते थे महेन्द्र कपूर
सुप्रसिद्ध पार्श्व गायक महेन्द्र कपूर से पं. सुरेश ताँतेड़ के आजीवन घनिष्ठ सम्बन्ध रहे। वे बताते हैं- “महेन्द्र कपूर से मेरा दिल का रिश्ता था। वे जब भी मिलते थे तो मेरे पैर छूते थे। उन्होंने हर बार हमारा निमंत्रण सहर्ष स्वीकार किया और एक महान गायक होने के बावजूद बगैर किसी नाज-नखरे के अपनी सांगीतिक प्रस्तुति दी। आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि परिषद् के कार्यक्रम में प्रस्तुति देने के लिये अपनी फीस लेना तो दूर, वे खुद अपनी ओर से संस्था को ग्यारह हज़ार रूपये भेंट कर गये। मौजूदा दौर के नामचीन पेशेवर गायकों से आप इस तरह के सहृदय व्यवहार और उदारता की कल्पना भी नहीं कर सकते..”
संगीत महर्षियों को नहीं मानदेय की फ़िक्र
“ग्रेमी अवार्ड प्राप्त पं. विश्व मोहन भट्ट ने भी हमारे यहाँ प्रस्तुति देने के लिये कभी कोई फीस नहीं ली। यहाँ तक कि पं. भीमसेन जोशी और पं. जसराज ने भी परिषद् के कार्यक्रम में आने के लिए कभी भी पैसे की बात नहीं की और जो मानदेय हमने दिया, उसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। यह उन महान कलाकारों का बड़प्पन ही कहलाएगा..”
पुरानी यादों की जुगाली करते हुए वे मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री बाबूलाल गौर (जिन्होंने एक ज़माने में भोपाल टेक्सटाइल मिल में उनके मातहत काम किया था) को याद करना हरगिज़ नहीं भूलते- “गौर साहब को कैसे भूल सकता हूँ जिन्होंने हमारी संस्था द्वारा आयोजित होली महोत्सव में कई बार अतिथियों को स्वयं अपने हाथों से भोजन परोसा..”
.. और अब पूर्णाहुति
अधिकांश समय मंच से परे रहकर मंच की रौनक बढ़ाने और महफ़िल सजाने का जूनून पालने वाले पं. सुरेश ताँतेड़ को गत वर्ष अचानक कैंसर जैसी घातक बीमारी ने जकड़ लिया है। शारीरिक अस्वस्थता के चलते विवश होकर उन्होंने अब 2025 में 25 जनवरी को ‘उत्सव गणतंत्र’ और 14-17 मार्च तक आखिरी बार ‘वसंत उत्सव’ आयोजित कर भारी मन से ‘अभिनव कला परिषद्’ व ‘मधुबन’ की सुदीर्घ कला यात्रा को पूर्ण विराम देने की घोषणा कर दी है।
शुभचिंतकों के लिए एक कला मनीषी का यह फैसला शिरोधार्य करना कलेजे पर पत्थर रखने से कम नहीं है। अक्सर एक उक्ति पढ़ने सुनने को मिलती है- “काल उसका क्या बिगाड़ेगा जो भक्त हो महाकाल का..!” काश, राजाधिराज महाकाल अपने इस भक्त की सारी पीड़ा हर लें, जो उज्जैन के श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रांगण में 1993 से हर शिवरात्रि पर बड़े जतन से संजोता रहा है संगीत महोत्सव ‘उत्सव महाकाल’ के नाम से..!!
विनोद नागर
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार,प्रसारक व स्तंभकार हैं)
0 टिप्पणियाँ