ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं' कवि अंकुर ‘आनंद’ की कविता है
एक जनवरी पर पिछले कई वर्षों से भारत के सोशल मीडिया में अँग्रेजी नव वर्ष पर विरोध स्वरूप पढ़ी जाने वाली कविता ‘ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं’ के रचनाकर के नाम पर विवाद है।
ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं
है अपना ये त्यौहार नहीं
है अपनी ये तो रीत नहीं
है अपना ये व्यवहार नहीं
इन पंक्तियों के रचनाकर के नाम पर विवाद
विवाद ये है कि न जाने कब और किसने इस कविता के साथ प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का नाम जोड़ दिया, जबकि जाँच-पड़ताल करने पर सच्चाई कुछ और ही सामने आई है। वास्तविकता ये है कि इसके रचनाकर ‘दिनकर’ नहीं अपितु जिला रोहतक, हरियाणा के रहने वाले अंकुर ‘आनंद’ हैं।
उनके अनुसार अंकुर ने इसकी रचना दिसंबर 2012 में की थी लेकिन 2017 के बाद से अचानक न जाने किसने उनकी इस रचना को ‘दिनकर’ जी के नाम के साथ जोड़ दिया और फिर धीरे – धीरे सोशल मीडिया पर यह ‘दिनकर’ के नाम के साथ वायरल हो गई। अंकुर के अनुसार उन्होंने इसके बारे में सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्म पर अनेक बार अपना विरोध दर्ज कराया है।
कवि अंकुर आनंद कहते है
अंकर कहते है कि -यह कविता मैंने दिसंबर 2012 में उधमपुर( जम्मू कश्मीर) पोस्टिंग के दौरान लिखी थी। प्रथम बार 31 दिसम्बर 2012 को एक हिमाचल के लाइनमैन के सेवानिवृत्ति उत्सव में इसका वाचन किया था। तभी से इस रचना को सोशल मीडिया पर पोस्ट करना आरंभ किया था। मार्च 2017 को प्रतिपदा के अवसर पर मेरी दूसरी पुस्तक ‘कलम जब ठान लेती है’ का विमोचन हुआ। उस पुस्तक में यह रचना प्रकाशित है। नया ज्ञानोदय पत्रिका में स्तंभ लिखने वाले एनडी टीवी के वरिष्ठ संपादक प्रियदर्शन ‘नया साल और नकली माल’ लेख में इस रचना के दिनकर के नाम से वायरल होने पर फरवरी 2018 के अंक में अपना वामपंथी रुदन प्रदर्शित कर चुके हैं।
इस रचना शैली का स्तर दिनकर जी शैली से बहुत कमजोर है, साहित्यिक सूझ बूझ वाले व्यक्ति उस कमी को सहज पकड़ लेते हैं क्योंकि मेरी साहित्यिक पढ़ाई लगभग शून्य है। इस रचना में अनेक स्थानों पर लय बद्धता टूटती है, छंद विधा का भी पालन नही हुआ है। और प्रत्येक रचनाकार की अपनी भाव भूमि होती है, अनेक साहित्यकारों ने इसकी विषयवस्तु देखकर ही इसे दिनकर की रचना मानने से इनकार कर दिया था। आप सोशल मीडिया पर खोज कर सकते हैं।
(साभार हिंदी सर्कल)
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