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अपने कथ्य की ज़रूरत के अनुसार लघुकथा अपना आकार स्वयं तय करती है -डॉ. रामवल्लभ आचार्य


भोपाल। लघुकथा लिखने से पूर्व लघुकथाकार उसके आकार और शब्द संख्या पर नहीं उसके कथ्य पर ध्यान दें क्योंकि अपना आकार कथ्य की ज़रूरत के अनुसार लघुकथा स्वयं तय करती है। यह उदगार हैं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामवल्लभ आचार्य के जो लघुकथा शोध केंद्र समिति भोपाल द्वारा हिंदी भवन के नरेश मेहता कक्ष में आयोजित लघुकथा पाठ एवं विमर्श के आयोजन की अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे। 
इस आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए वरिष्ठ साहित्यकार विनोद जैन ने लघुकथा शोध केंद्र के आयोजनों में निरंतरता को लघुकथा विधा के विकास में मील का पत्थर बताया।
आयोजन में मुख्य वक्ता और समीक्षक के रूप में डॉ. रंजना शर्मा ने पूर्वज लघुकथाकारों की कालजयी लघुकथाओं का वाचन करते हुए प्रस्तुत की गई लघुकथाओं की समीक्षा की, गोष्ठी के प्रारम्भ में केंद्र की निदेशक कांता रॉय ने स्वागत उद्बोधन दिया तत्पश्चात् घनश्याम मैथिल अमृत के संचालन में लघुकथा गोष्ठी आरम्भ हुई।
जिसमें डॉ. शबनम सुल्ताना ने संवाद, डॉ. गिरजेश सक्सेना ने सॉरी, सतीश चंद श्रीवावास्तव ने कड़वा सच, मृदुल त्यागी ने लक्ष्य, मुज़फ्फर इक़बाल सिद्दीकी ने बोनस, मेघा मैथिल ने भरपाई, डॉ. मौसमी परिहार ने मंगल ग्रह की ख़ुशी, गोकुल सोनी ने दूसरी माँ, अशोक धमेनिया ने गरीबों की सर्दी, बिहारीलाल सोनी ने संवेदना, रेखा सक्सेना ने व्ही आई पी ड्यूटी, चरणजीत कुकरेजा ने खरोंचें, कांता रॉय ने प्यार, घनश्याम मैथिल ने सोशल डिस्टेंस, मनोरमा पंत ने औरत का कुसूर, लघुकथाओं का पाठ किया। कार्यक्रम के अंत में गोकुल सोनी ने आभार प्रकट किया।

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