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भौतिक रूप से परमात्मा की उपस्थिति का अनुभव बौद्धिक दीप से ही होता है -डॉ. मोहन गुप्त


उज्जैन। ईश्वर जिनमें बुद्धि की थोड़ी अधिक दीप्ति देता है वह परमात्मा का अंश होता है। त्वरित पत्रकारिता का गुण, अद्भुत और असाधारण व्यक्तित्व, राग-द्वेष से ऊपर ऐसी कई सारी विशेषताऐं एक ही व्यक्ति में पहली बार देखने को मिली देवेन्द्र जोशी में। वे एक श्रेष्ठ चिंतक और विचारक भी थे। आदि शंकराचार्य का उदाहरण देते हुए गुप्त जी ने कहा कि उन्होंने मात्र 32 वर्ष की आयु में अद्भुत साहित्य सृजन किया क्योंकि उनको अपना अवसान नजदीक होने का भान हो गया था। वरना क्या वजह थी कि देवेन्द्र जोशी ने 5 बरस में 35 से अधिक किताबें लिख डाली।

ये उद्गार अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में पूर्व संभागायुक्त और पूर्व कुलपति डॉ. मोहन गुप्त ने द्रवित मन से अनुज तुल्य देवेन्द्र जोशी को श्रध्दा सुमन अर्पित करते हुए व्यक्त किये। रविवार शाम प्रेस क्लब उज्जैन में शहर के साहित्यकारों और गणमान्य नागरिकों ने डॉ. देवेन्द्र जोशी को श्रद्धासुमन अर्पित किए। विशिष्ट वक्ता के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार और हिन्दी मालवी के कवि प्रो. शिव चौरसिया जी ने कहा कि हम व्यथित और विचलित है कि एक बहुकोणीय व्यक्ति, अच्छा डिबेटर, श्रेष्ठ शिक्षक, पत्रकार, कवि, लेखक, चिंतक और तमाम तरह से गुणी ऐसे अनुज का असमय हमारे बीच से चले जाने से मन को गहरा आघात पहुंचा है। जीवन लम्बा हो या ना हो मगर गुणवत्तापूर्ण हो, उम्र कम थी मगर प्रेमचंद और सरल जी की तरह लिखने की बैचेनी बहुत थी देवेन्द्र में।

मध्यप्रदेश लेखक संघ उज्जैन के अध्यक्ष और हिन्दी विभाग के पूर्व आचार्य डॉ. हरिमोहन बुधौलिया ने देवेन्द्र जी को अपना दाहिना हाथ बताते हुए कहा कि व्यक्ति कर्मों से याद किया जाता है और देवेन्द्र जी अपने किए गए कार्यों और सरलता एवं सहजता से सदैव याद किए जाएगें। उनकी स्मृतियां लेखक संघ में चिर स्थायी रहेगीं। अपने वक्तव्य में व्यंग्यकार डॉ. पिलकेन्द्र अरोरा ने कहा कि देवेन्द्र शब्दों के नायक थे। स्पष्टवादी व्यक्तित्व के धनी देवेन्द्र जोशी का विकल्प नही मिलता। 80 के दशक में टेपा सम्मेलन की रपट देवेन्द्र जी द्वारा कई बड़े पत्र पत्रिकाओं नई दुनिया, नव भारत टाईम्स, ब्रिगेडियर, दिनमान, धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान में प्रकाशित होती थी।

व्यंग्यकार डॉ. हरीशकुमार सिंह ने कहा कि उनकी मुलाकात टेपा सम्मेलन से हुई। आगे जिक्र करते हुए कहा कि वे एक ऐसी शख्सियत थे जो सच कहने का साहस रखते थे। अपनी डबडबाई आंखो से डॉ. उर्मि शर्मा ने कहा कि देवेन्द्र जी एक कुशल संचालक और आयोजक थे साथ ही समय के पाबंद और अनुशासन प्रिय भी थे। साहित्यकार श्री श्रीराम दवे ने देवेन्द्र जोशी की पुस्तकों का जिक्र किया कि उन्होनें देवेन्द्र जी की कई पुस्तकों की चर्चा की थी। साहित्यकार संदीप सृजन ने कहा कि देवेन्द्र जी से उनका सम्पर्क पिछले बीस वर्षों से था और उज्जैन में राष्ट्रीय पुस्तक मेले में उज्जैन के साहित्यकारों को स्थान दिलवाना देवेन्द्र जी की बहुत बड़ी उपलब्धि थी। सीमा देवेन्द्र ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी।

जनसंपर्क अधिकारी श्री पंकज मित्तल , बी.के. शर्मा , शीला व्यास , पुष्पा चौरसिया , संतोष सुपेकर , एच एल माहेश्वरी, राजेश ठाकुर आदि ने भी श्रद्धासुमन अर्पित किये। समारोह में राजेश राज, प्रफुल्ल शुक्ला, अनुभव प्रधान, अमित अग्रवाल, आदित्य मंडलोई, डॉ. अभिलाषा शर्मा, नीलेश शर्मा, विजय त्रिवेदी, विपुल जोशी, गजेन्द्र जोशी, अंकित जोशी, अपूर्व जोशी, आशा जोशी, हेमलता जोशी, दीपिका जोशी, अवनी जोशी , अमिक्षा जोशी, आकांक्षा मंडलोई, कुमकुम जोशी , कुशाग्र जोशी सहित अनेक आत्मीयजन उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. पांखुरी वक्त जोशी ने किया । कार्यक्रम समाप्ति से पूर्व 2 मिनट का मौन रख कर श्रद्धांजलि दी गई।

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