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हमारी जी.डी.पी. तो बढ़ रही है, किंतु हम प्रकृति को खोते जा रहे हैं – प्रो.चेतन सिंह सोलंकी

अखिल भारतीय सद्भावना व्याख्यानमाला के शुभारंभ प्रसंग पर व्यक्त किए अपने विचार

उज्जैन। हमारी जीडीपी लगातार बढ़ रही है, लेकिन प्रकृति का स्तर गिरता जा रहा है। यह एक ऐसा सच है, जिसे नजरअंदाज करना अब संभव नहीं है। हम टीवी, मोबाइल और कंप्यूटर के बिना जी सकते हैं, लेकिन हवा, पानी और मिट्टी के बिना नहीं। फिर भी, हम इन आवश्यक संसाधनों को लगातार नुकसान पहुंचा रहे हैं। धरती का तापमान हर साल बढ़ रहा है, और यह संकेत है कि हमारी पृथ्वी बुखार में है। जैसे बुखार में हमारा शरीर ठीक से काम नहीं करता, वैसे ही पृथ्वी भी असंतुलन की स्थिति में है और यह स्थिति गंभीर खतरे का संकेत है। यह आधुनिक मूर्खता है कि हम अपनी सुविधाओं के लिए धरती को लगातार नुकसान पहुंचा रहे हैं। बड़े फ्रिज, बड़े घर और अधिक ऊर्जा खपत करने वाले उपकरणों का उपयोग हमारी प्रकृति को बुरी तरह से प्रभावित करता है। आवश्यकता से अधिक वस्तुओं के संग्रह को मेंटेन करने में प्रकृति से अधिक एनर्जी खर्च होती है । आर्थिक रूप से भले ही हम इनका बोझ सहन कर सके किंतु हमारी पृथ्वी इस बोझ को सहन नहीं कर सकती, क्योंकि उसके संसाधन सीमित है ।

उक्त विचार प्रसिद्ध पर्यावरणविद्, आईआईटी मुंबई के प्रोफेसर और जल योद्धा प्रोफेसर चेतन सिंह सोलंकी ने भारतीय ज्ञानपीठ ( माधव नगर ) में कर्मयोगी स्व. कृष्ण मंगल सिंह कुलश्रेष्ठ की प्रेरणा एवं पद्मभूषण डॉ. शिवमंगल 'सुमन' की स्मृति में आयोजित 22 वीं अ.भा.सद्भावना व्याख्यानमाला के शुभारंभ प्रसंग पर प्रमुख वक्ता के रूप में व्यक्त किए ।

"जलवायु परिवर्तन की समस्या और सोलर ऊर्जा से निदान" विषय पर व्यक्त अपने विचारों में प्रो. सोलंकी ने कहा कि मौसम में असामान्य बदलाव, हीटवेव, कोल्डवेव, जंगलों की आग और बर्फ का तेजी से पिघलना, ये सब मानवजनित जलवायु परिवर्तन के परिणाम हैं। अब यह मायने नहीं रखता कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है। यह मानना होगा कि 'जलवायु परिवर्तन मैंने किया है' और अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।

उन्होंने बताया कि आज के समय में 85% ऊर्जा कोयला, डीजल और पेट्रोल जैसे कार्बन स्रोतों से आती है। इनका उपयोग न केवल वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ाता है, बल्कि हमारी जलवायु को असंतुलित कर रहा है। "हमने जंगल काट दिए, पहाड़ों को खोखला कर दिया, और नदियों को सुखा दिया। हम जिस पानी को पीते हैं, उसी को प्रदूषित कर रहे हैं। आज हमारी जरूरतें बढ़ गई हैं, लेकिन यह समझना होगा कि हमारी पृथ्वी के संसाधन सीमित हैं। हमें आवश्यकता और लालच के बीच अंतर करना होगा। आधुनिक तकनीक और सुविधाओं की अंधी दौड़ में हमने अपने पर्यावरण को 52% तक बदल डाला है, जो जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण है।"

उन्होंने सोलर ऊर्जा और कम ऊर्जा खपत वाले संसाधनों का उपयोग करने पर जोर देते हुए कहा, हमें सौर ऊर्जा की ओर लौटना होगा, लेकिन इसकी खपत को भी सीमित करना होगा। स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देना, कम दूरी पर सामानों का निर्माण और उपयोग करना, गांधी जी की इस सोच को हमें अपनाना होगा।

प्रोफेसर सोलंकी ने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि अगले पांच वर्षों में ठोस प्रयास नहीं किए गए, तो जलवायु परिवर्तन को रिवर्स करना असंभव हो जाएगा। यह समय है धरती पर रहने के नियमों को समझने और उन्हें अपनाने का। प्रकृति हमारी सीमाओं को समझती है, हमें भी अपनी सीमाएं समझनी होंगी।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए विक्रम विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. अर्पण भारद्वाज ने कहा कि जलवायु परिवर्तन आज मानवता के सामने एक गंभीर चुनौती है, जिसका समाधान सौर ऊर्जा में निहित है।

प्रो. भारद्वाज ने विश्वविद्यालय के पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों का उल्लेख करते हुए कहा कि विक्रम विश्वविद्यालय ने सोलर पैनल्स की स्थापना, जल संचयन प्रणाली का निर्माण, और वृक्षारोपण अभियानों जैसे अनेक पहल किए हैं। इन प्रयासों का उद्देश्य न केवल परिसर को हरित और टिकाऊ बनाना है, बल्कि विद्यार्थियों और समाज को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक करना भी है।

प्रो. भारद्वाज ने सौर ऊर्जा के आर्थिक और पर्यावरणीय लाभों की चर्चा करते हुए बताया कि यह ऊर्जा न केवल स्वच्छ और सतत है, बल्कि यह ऊर्जा आत्मनिर्भरता और प्रदूषण नियंत्रण में भी अहम भूमिका निभाती है। उन्होंने कहा कि भारत जैसे देश में, जहाँ सूर्य की किरणें प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं, सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

अपने विचार समाप्त करते हुए प्रो. भारद्वाज ने कहा कि जलवायु परिवर्तन से निपटने और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वच्छ और सुरक्षित भविष्य बनाने के लिए हम सभी को सौर ऊर्जा को अपने जीवन में शामिल करना होगा। उन्होंने समाज के सभी वर्गों से अपील की कि वे पर्यावरण संरक्षण को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाएं और जागरूकता फैलाने में योगदान दें।

व्याख्यानमाला के आरंभ में संस्थान की शिक्षिकाओं द्वारा सद्भावना गीतों की प्रस्तुति दी गई। वरिष्ठ शिक्षाविद श्री दिवाकर नातु, संस्थान प्रमुख श्री युधिष्ठिर कुलश्रेष्ठ , श्री संदीप कुलश्रेष्ठ , श्रीमती अमृता कुलश्रेष्ठ सहित संस्थान के पदाधिकारियों द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, कविकुलगुरु डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन और कर्मयोगी स्व. श्री कृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ के प्रति सूतांजलि अर्पित कर दीप प्रज्वलित किया गया। भारतीय ज्ञानपीठ के सद्भावना सभागृह में डिजिटल व्याख्यानमाला को सुनने के लिए पूर्व संयुक्त संचालक शिक्षा श्री बृजकिशोर शर्मा ,शिक्षाविद श्री विनोद काबरा ,प्रो. रमाकांत नागर, प्रो. के डी सोमानी, प्रो. प्रकाश जैन , श्री सत्यनारायण सौनक ,श्री सुरेश भालेराव, गोपाल कृष्ण निगम , स्वदेश शर्मा , साहित्यकार अनिल गुप्ता, श्रीराम दवे, दिलीप चौधरी सहित गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।व्याख्यानमाला का संचालन संस्था के अकादमिक डायरेक्टर डॉ गिरीश पंडया ने किया।

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