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धार्मिक मर्यादा के साथ हो रहा है नागर समाज में नवरात्रि का आयोजन


उज्जैन। (देशना जैन द्वारा) उज्जयिनी हमेशा से ही शिव और शक्ति की आराधना का केंद्र माना गया है। जहाँ उज्जैन में सावन की छटा निराली होती है, वहीं नवरात्रि का उत्सव भी धूमधाम से मनाया जाता है। शारदीय नवरात्रि देश भर की तरह उज्जैन में भी अनेक धार्मिक आयोजन तथा विभिन्न सामाजिक संस्थाओं द्वारा गरबें आयोजित किये जाते है।

उज्जैन नगर में पारंपरिक गरबा की श्रृंखला चल रही है। जिसमें म.प्र. नागर ब्राह्मण परिषद द्वारा पिछले 50 वर्षों से सतत पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ गरबा का आयोजन नागर ड़ाडिया नाम से किया जाता है। इस परम्परा की शुरुआत डॉ. बालकृष्ण नागर के निवास स्थान से की गई थी। उसके बाद नागर चाय वालों के यहाँ, लकड़ी पीठे पर, प्रेम-छाया परिसर में होते रहे और अब विगत कुछ वर्षों से शर्मा परिसर में नागर ब्राह्मण समाज द्वारा यह आयोजन किया जा रहा है।


वर्तमान समाज अध्यक्ष भूपेन्द्र त्रिवेदी, महिला अध्यक्ष प्रीति मनोज शर्मा, तथा युवा अध्यक्ष अमित नागर के मार्गदर्शन और नेतृत्व में इस वर्ष गरबें आयोजित हो रहे है। नागर समाज मूल रूप से गुजरात से ही निकला है, इसलिए यहॉ पूरा आयोजन गुजराती गरबों की परम्परा अनुसार ही होता है। यहाँ पर गुजरात में विराजित अम्बा माता के स्वरूप की पूजा की जाती है। वे नागर ब्राह्मण समाज की कुलदेवी है। नवरात्रि के पहले दिन पारंपरिक तौर-तरीकों से घट स्थापना की जाती है और फिर पूरे नौ दिनों तक धार्मिक अनुष्ठानों के साथ सुबह-शाम माता की आरती होती है। शाम की आरती के बाद सबसे पहले डोल की थाप पर गरबा प्रारंभ किया जाता है।

धार्मिक मर्यादा को बनाए रखते हुए यहॉ केवल पारंपरिक परिधान में ही गरबा किया जाता है। साथ ही वर्तमान के प्रचलन अनुसार नौ दिनों तक अलग-अलग रंग के कपड़े तथा उपकरणों के माध्यम से माता की भक्ति की जाती है। यह नागर ब्राह्मण समाज का सामाजिक आयोजन होने से यहाँ केवल नागर समाज वालों को ही गरबा खेलने की अनुमति हैं। अन्य लोग दर्शक दीर्घा में बैठकर गरबा का आनंद ले सकते हैं। इस आयोजन का पूरा खर्च समाज द्वारा ही वहन किया जाता है। साथ ही स्वल्पाहार की भी व्यवस्था समाज द्वारा रहती है।

'नागर डांडिया' की विस्तृत जानकारी देते हुए समाज के श्री संजय जोशी एवं श्री लव मेहता ने बताया कि यहाँ पर विशेष रूप से नरसी जी की हुंडी आकर्षण का केन्द्र रहती है। गरबा के अंत में नरसी मेहता जी की प्रसिद्ध हुंडी गायी जाती है, जिसमें श्री कृष्ण ने नरसी मेहता जी की किस प्रकार सहायता करी थी, उसका पूरा वर्णन रहता है। यह बहुत प्रसिद्ध और आकर्षक प्रस्तुति होती है।

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