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समाज को स्वस्थ बनाने की कारगर औषधि है उगें हरे संवाद

योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' के दोहा-संग्रह 'उगें हरे संवाद' पर हुई चर्चा-गोष्ठी


मुरादाबाद। साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से सुप्रसिद्ध साहित्यकार योगेन्द्र वर्मा के दोहा-संग्रह 'उगें हरे संवाद' पर एक चर्चा-गोष्ठी का आयोजन 6 अक्टूबर को किया गया। आयोजन मिलन विहार स्थित आकांक्षा इंटर कॉलेज में हुआ। 

मीनाक्षी ठाकुर द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. अजय अनुपम ने की। मुख्य अतिथि श्री राजीव सक्सेना श्री एवं विशिष्ट अतिथियों के रूप में ओंकार सिंह ओंकार एवं श्री अशोक विश्नोई मंचासीन रहे जबकि कार्यक्रम का संचालन राजीव प्रखर ने किया।

उल्लेखनीय है कि श्री व्योम का उपरोक्त संग्रह हाल ही में प्रकाशित होकर साहित्यिक समाज में पर्याप्त प्रतिष्ठित हो चुका है। संग्रह के विषय में अपने विचार रखते हुए वरिष्ठ साहित्यकार एवं इतिहासकार डॉ. अजय अनुपम ने कहा - "व्योमजी का दोहा-संग्रह 'उगें हरे संवाद' हमें नए स्वस्थ वैचारिक समाज का सशक्त घटक बनाने का पौष्टिक च्यवनप्राश है। उज्ज्वल भविष्य के प्रेरक दोहे समाज को सही दिशा दिखाने में पूर्णतया सक्षम हैं।" 

वरिष्ठ कवि अशोक विश्नोई के अनुसार - "व्योम जी के दोहे वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों का सजीव चित्रण करते हैं।" मुख्य अतिथि राजीव सक्सेना का कहना था - "दोहा जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण छंद को आम व्यक्ति की समस्याओं से जोड़ने में 'उगें हरे संवाद' एक दस्तावेज़ सिद्ध होगी। आने वाले समय में वह इस छंद को और भी अधिक ऊंचाई तक ले जायेंगे।" 


लोकप्रिय शायर ज़िया ज़मीर के अनुसार - "व्योमजी के यहां नवगीतों की अपेक्षा दोहों में मुखरता और कटाक्ष अधिक दिखाई देता है और विषयों की विविधता भी। यहां उनका लहजा तीखा भी है और धारदार भी। कहीं-कहीं भाषा शैली क्लिष्ट होने के बावजूद ये दोहे अपना अर्थ स्पष्ट कर जाते हैं।" 

महानगर के रचनाकार राजीव प्रखर का कहना था - "समस्या मूलक इन सभी दोहों की यह विशेषता है कि ये समस्या के मात्र तात्कालिक स्वरुप को ही इंगित नहीं करते अपितु कालांतर में वह समस्या क्या एवं कितना विस्तार ले सकती है, इस ओर भी संकेत कर जाते हैं। यही कारण है कि उच्च-स्तरीय बिंबों में गुॅंथा यह दोहा-संग्रह वर्तमान के साथ-साथ भविष्य की हलचल को भी पाठकों के सम्मुख रख देता है।" 

कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर के अनुसार - "व्योम जी इन दोहों में समाज को आईना भी दिखाते हैं और सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ पारिवारिक रिश्तों में मिठास और सामाजिक-संबंधो में उल्लास बनाये रखने की पैरवी भी करते हैं, यही उनके दोहों की आत्मा है।" 

कवि मनोज मनु ने कहा - "इंटरनेट के इस त्वरित युग में, जहाँ सभी को शीघ्र ही बात के सार तक पहुंचने की तत्परता रहती है, ऐसे समय में व्योम जी का नवगीत के एक सशक्त हस्ताक्षर के रूप में स्थापित होते हुए भी 'गागर में सागर' भरती विधा "दोहा" द्वारा अपनी सारगर्भित बात को नई पीढ़ी तक कम शब्दों में पहुंचाने का माध्यम बनाना उनके दूरदर्शी नज़रिए से भी साक्षात्कार करवाता है।" 

कवि अंकित गुप्ता अंक के अनुसार - "व्योम जी अपनी रचनाओं में सदैव ही दुरूह और भारी-भरकम शब्दों के प्रयोग से बचते रहे हैं और उनकी यह विशेषता पुस्तक में सर्वत्र परिलक्षित होती है‌"। 

हेमा तिवारी भट्ट द्वारा लिखित समीक्षा का पाठ करते हुए मीनाक्षी ठाकुर ने कहा - "प्रस्तुत दोहा संग्रह में लगभग सभी समकालीन विषयों यथा भ्रष्टाचार, राजनैतिक पतन, गरीबी, मातृभाषा हिन्दी की स्थिति, मंचीय लफ्फाजी, कविता की स्थिति, पारिवारिक विघटन, आभासी सोशल मीडिया युग, चाटुकारिता और स्वार्थपरता जैसे विविध विषयों पर कवि द्वारा अपने उद्गार अपनी विशिष्ट दृष्टि के पैरहन पहनाकर प्रस्तुत किये गये हैं।" कवि विवेक निर्मल ने उक्त कृति पर आधारित सुंदर दोहों के माध्यम से अपनी अभिव्यक्ति की‌। 

उपरोक्त वक्ताओं के अतिरिक्त जितेन्द्र जौली, राहुल शर्मा, पदम बेचैन, फक्कड़ मुरादाबादी, नकुल त्यागी, डॉ. पूनम गुप्ता, योगेन्द्र पाल विश्नोई, रामदत्त द्विवेदी आदि ने भी संग्रह की उपयोगिता तथा श्री व्योम के दोहा-सृजन पर प्रकाश डाला। 

कार्यक्रम में दोहा-पाठ करते हुए चर्चित कृति के रचनाकार श्री योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने कहा - मिल-जुलकर हम-तुम चलो, ऐसा करें उपाय। अपनेपन की लघुकथा, उपन्यास बन जाय।। धन-पद-बल की हो अगर, भीतर कुछ तासीर। जीकर देखो एक दिन, वृद्धाश्रम की पीर।। कथनी तो कुछ और पर, करनी है कुछ और। इस युग का सिरमौर है, दुहरेपन का दौर।। बदल रामलीला गई, बदल गये अहसास। राम आजकल दे रहे, दशरथ को वनवास।। जितेन्द्र जौली द्वारा आभार अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।

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