चेन्नई। भारत सरकार ने 3 अक्टूबर को प्राचीन भाषा प्राकृत को शास्त्रीय (क्लासिकल) भाषा का दर्जा प्रदान करने की स्वीकृति प्रदान की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्राकृत सहित पाँच भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने को स्वीकृति दी। श्री श्वेतांबर स्थानकवासी जैन एजुकेशनल सोसायटी के महासचिव अभय श्रीश्रीमाल जैन एवं प्राकृत मनीषी डॉ. दिलीप धींग ने सरकार के इस निर्णय का अभिनंदन किया है। उन्होंने अभुषा फाउंडेशन की ओर से सरकार को धन्यवाद पत्र लिखा है। श्रीश्रीमाल ने कहा कि जैन समाज में प्राकृत भाषा शिक्षण और प्राकृत साहित्य का स्वाध्याय नित्य होता है।
अंतरराष्ट्रीय प्राकृत केन्द्र के पूर्व निदेशक डॉ. दिलीप धींग ने कहा कि प्राकृत एक ऐसी निराली भाषा है, जिससे भारतीय भाषाओं के आंतरिक संबंध एवं समरूपता को समझना आसान हो जाता है। हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में प्राकृत के अनेक शब्द, रूप और प्रवृत्तियां विद्यमान हैं। उन्होंने कहा कि देश में सर्वाधिक शिलालेख प्राकृत भाषा में लिखे मिलते हैं। इन शिलालेखों का सीमाक्षेत्र अफगानिस्तान से उड़ीसा तक और हिमालय की तराई से लेकर सुदूर दक्षिण तक व्याप्त है।
साहित्यकार डॉ. धींग ने बताया कि प्राकृत का प्रत्यक्ष या परोक्ष सम्बन्ध भारत की सभी भाषाओं के साथ जुड़ा है। किसी समय प्राकृत जनबोली और जनभाषा रही। इसे राजभाषा का सम्मान भी मिला। इस वजह से अनेक मुद्रालेख भी प्राकृत में मिलते हैं। साथ ही प्राकृत, साहित्य की भाषा भी रही।
डॉ. धींग ने स्पष्ट किया कि प्राकृत का आशय किसी जाति, स्थान या काल विशेष की भाषा से नहीं, अपितु विशाल भारतवर्ष के प्राणों में स्पन्दित होने वाली उन बोलियों के समूह से है, जो ईस्वी पूर्व लगभग छठी या पाँचवीं शताब्दी से लेकर ईसा की चौदहवीं शताब्दी तक यानी लगभग दो हजार वर्षों तक भाषा के रूप में प्रतिष्ठित रहीं।
जैन समाज और प्राकृत प्रेमी लंबे समय से प्राकृत को शास्त्रीय भाषा की मान्यता की मांग कर रहे थे। डॉ. धींग ने भी सरकार को इस आशय का पत्र लिखा था। बहुश्रुत जयमुनि की निश्रा में 2022 में रोहतक (हरियाणा) में आयोजित प्रथम राष्ट्रीय प्राकृत संगोष्ठी में भी डॉ. धींग ने प्राकृत को शास्त्रीय भाषा की मान्यता का प्रस्ताव रखा था, जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया था। प्राकृत में शास्त्रीय भाषा की सारी विशेषताएं पूरी तरह से विद्यमान हैं।
उल्लेखनीय है कि प्राकृत के अतिरिक्त यह स्वीकृति पालि, मराठी, बांग्ला और असमिया भाषाओं को मिली है। छह भारतीय भाषाएं यह दर्जा पहले ही पा चुकी थीं। सबसे पहले 2004 में तमिल और उसके बाद 2005 में संस्कृत को यह दर्जा मिला था। तत्पश्चात तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और उड़िया को शास्त्रीय भाषाओं की श्रेणी में लिया गया। अब कुल ग्यारह भारतीय भाषाएँ शास्त्रीय भाषा की श्रेणी में आ गई है।
0 टिप्पणियाँ