हमारे व्यक्तित्व का परिशोधन, हमारे चिंतन का परिमार्जन और हमारी भावनाओं का परिष्कार मानवीय गौरव गरिमा का आधार है, क्योंकि परिष्कार, परिशोधन, परिमार्जन एवं पुरुषार्थ के द्वारा व्यक्ति अपने जीवन में देवत्व, ऋषित्व, गुरुत्व एवं अर्थ तत्व को प्राप्त कर सकता है, आत्मनिर्भर बन सकता है। विषैले कार्बन युक्त कोयला जो प्राण घातक होता है परिष्कार से बहुमूल्य कोहिनूर हीरा बन जाता है। जंग लगने वाला लोहा स्टील, औषधि, रसायन व मिअंट के सिक्के बन जाता है, और नल का सामान्य पानी भी शुद्धिकरण (डिस्टलेशन प्रक्रिया) से डिस्टिल्ड वॉटर बन जाता है। अतः स्पष्ट है सामान्य व्यवहार बुद्धि के परिष्कार से तुच्छे तत्वों को महान बना दिया जाता है। वेस्ट को बेस्ट कर दिया जाता है।
बेरोजगारी की विकट समस्या हमारे सामने खड़ी है। शिक्षा को रोजगार का साधन मान लिया है जबकि शिक्षा केवल रोजगार उन्मुख राह प्रशस्त करती है। शिक्षा रोजगार की गारंटी नहीं है। रोजगार तो स्वयं व्यक्ति के भीतर में हुनर के रूप में छुपा हुआ है, उसे प्रकट करना जरूरी है। अपनी व्यावहारिक बुद्धिमता का उपयोग जरूरी है। इसके लिए नए-नए प्रयोगों द्वारा स्थानीय साधनों को उपयोग में लेकर रोजगार उत्पन्न किया जा सकता है। ऐसे कई उदाहरण लोगों ने प्रस्तुत किए हैं जिनके द्वारा उपयोगी वस्तुओं का निर्माण हुआ है और रोजगार भी मिला है।
आवश्यकता आविष्कार की जननी को चरितार्थ वाले सामान्य बुद्धि का व्यक्ति जिसके पास पर्याप्त साधन , पैसे तथा तकनीक के नहीं होते हुए भी व्यावहारिक बुद्धि (जिसे जुगाड़ कहा जाता है) की विधि द्वारा उपलब्ध साधनों से अपने हाथों की कला एवं दिमाग की परिकल्पनाओं द्वारा उपयोगी वस्तुएं तैयार कर लेता है। अपने हुनर का प्रदर्शन करने में प्रतिभा की, दिमाग की जरूरत होती है न की किसी डिग्री की और न ही कक्षाओं के उच्च अंकों से उत्तीर्ण करने की, वास्तव में वही शिक्षा कारगर है जो हमारे जीवन को बेहतर बनाती है तथा आत्मनिर्भरता प्रदान करती है। महात्मा गांधी ने सदैव स्वावलंबी बनने एवं स्थानीय साधनों की उपयोगिता को महत्व दिया जिससे अधिकांश लोग आत्मनिर्भर बन सके।
देखने में आता है कि छोटे-छोटे गांव के व्यक्ति आज ऐसे ऐसे कार्य कर रहे हैं जो न केवल उपयोगी वस्तुएं बना रहे हैं अपितु देश की अर्थव्यवस्था को भी सुदृढ़ एवं मजबूत करते हुए जरूरतमंदों को कम लागत पर साधन जुटाने का प्रशिक्षण भी दे रहे हैं। मेरठ के शिवाय गांव का 63 वर्षीय राजेश मात्र आठवीं कक्षा पास है लेकिन व्यावहारिक बुद्धिमता की जुगाड़ प्रक्रिया से इको फ्रेंडली अविष्कार करके कृषि में काम आने वाले निराई गुड़ाई के उपकरण सौर ऊर्जा से तैयार किया, सौर हल बनाया, आटा चक्की बनाई। आज उस क्षेत्र के लोगों को वह प्रशिक्षण के माध्यम से लाभान्वित कर रहा है और साथ में आईआई टी अहमदाबाद के विद्यार्थी भी वहां पर सीखने आते हैं। केवल मात्र पांच खाली ड्रम के प्रयोग द्वारा बायोगैस प्लांट तैयार करके गोबर गैस ऊर्जा भी उत्पादन कर ग्रामीणों को लाभान्वित कर रहा है।
हुनर किसी डिग्री का मोहताज नहीं होता इसे सिद्ध करने वाला मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के अंजड़ नगर निवासी जितेंद्र भार्गव ने पुरानी कबाड़ की साइकिल को किसान पावर पंप(छिड़काव करने का यंत्र) के इंजन द्वारा इको फ्रेंडली बाइसिकल मात्र 10000 से 15000 रुपए की लागत में तैयार कर ली जो एक लीटर पेट्रोल में 100 से 125 किलोमीटर चल सकती है। इस प्रकार राजस्थान के बारा जिले के बमोरी कला गांव के योगेश नागर ने मात्र 20 वर्ष की उम्र में ट्रैक्टर चलाने हेतु रिमोट कंट्रोल उपकरण तैयार कर लिया अब वही योगेश इंदौर में बीटेक विद्यार्थी के रूप में अध्यनरत है और भारतीय सेना वाले टैंक को चलाने के लिए रिमोट कंट्रोल उपकरण बनाने का प्रयास कर रहा है। अपनी रचनात्मक प्रवृत्ति के कारण ही चंडीगढ़ के रंजीत रंधावा ने बम कूट मोटर बाइक दूध के डोल से पेट्रोल टैंक , मारुति 800 के इंजन तथा एक एग्जॉस्ट फैन द्वारा तैयार कर नाम रोशन किया है।
व्यवहारिक बुद्धिमत्ता के कारण ही आज हुनरमंद नागरिक अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहे हैं। जो लोगों के लिए न केवल कारगर है वरन किफायती एवं उपयोगी भी सिद्ध हो रहे हैं। अतः युवा अपने हुनर को उपयोगी बनाकर राष्ट्रहित के लिए मददगार बनने का संकल्प करें ऐसी सोचवृत्ति से रोजगार तो उत्पन्न होगा ही इसके साथ-साथ आत्मनिर्भरता भी बढ़ेगी और बेरोजगारी की समस्या भी हल होगी।
पदमचंद गांधी, भोपाल
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