Subscribe Us

अपने समय और जीवन के कथा शिल्पी थे प्रेमचंद

चेन्नई।हिंदी साहित्य भारती तमिलनाडु प्रदेश समिति के तत्त्वावधान में हिंदी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रेमचंद की जयंती के उपलक्ष्य में आभासी संगोष्ठी का आयोजन किया गया।इंदौर से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका ‘वीणा’ के संपादक राकेश शर्मा के मुख्य अतिथि थे। सरस्वती वंदना के साथ अतिथियों का स्वागत करते हुए आशीर्वचन में हिंदी के जाने-माने व्यंग्यकार बी.एल आच्छा ने प्रेमचंद के कथा-साहित्य की आज के युग में प्रासंगिकता पर अपने विचार रखे । उन्होंने कहा कि प्रेमचंद का साहित्य जीवन के यथार्थ और युग बोध का चित्रण है। इसीलिए आज भी उसकी प्रासंगिकता बरकरार है।कथा साहित्य को काल्पनिक दुनिया से धकेल कर साधारण मानवता की व्यस्थाओं से जोड़ कर उन्होंने युगांतर ला दिया। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी राज में शोषण, भारतीय समाज में जाति भेद, किसानों की व्यथा, स्वतंत्रता संग्राम और गांधी के आंदोलन की छाप प्रेमचंद के साहित्य में मिलती है।

मुख्य अतिथि के रूप में वीणा के संपादक राकेश शर्मा ने कहा कि प्रेमचंद का साहित्य जीवन से साक्षात्कार और सामाजिक बदलाव का साहित्य है ।फिर वो चाहे गाँव हों, बैल हों , खेत-खलिहान हों या महाजनी सभ्यता और जागीरदारों द्वारा शोषण का हो । प्रेमचंद ने वह जीवन देखा और जिया था ,जिसकी झलक उनके साहित्य में पाई जाती है । निम्न वर्ग और उच्च वर्ग के भेदभाव और किसानों के शोषण की स्थितियों और संवेदनाओं के सजीव चित्रण ने ही हिंदी कथा साहित्य के लाखों पाठकों को खड़ा कर दिया । उन्होंने कहा कि प्रेमचंद दलितों और शोषितों के मसीहा थे , नारी सशक्तीकरण के पक्षधर थे ।गोदान का गोबर और धनिया इस बात के सबूत है कि वे समरस समाज चाहते थे ।शहरीकरण और अंधी आधुनिकता की होड़ में मूल्यों को तिलांजलि दे रही मानसिकता को दर्शाने वाली कहानियों में मंत्र कहानी को उदधृत करते हुए उन्होंने कहा कि एक ओर निश्चल ग्रामीण संस्कृति और दूसरी ओर संवेदनहीन शहरी सभ्यता की मानसिकता के अंतर को यह कहानी प्रभावशाली ढ़ंग से व्याख्यायित करती है ।उनके रचना कर्म का परिपक्व उदाहरण ‘कफन ‘ कहानी को मानते है ,जिसमें निम्न वर्ग की व्यथा और पतनशीलता बखूबी दर्शाया गया है । इस दृष्टि से प्रेमचंद मानवीय संवेदनाओं को चित्रित करने वाले उत्कृष्ट शब्द शिल्पी थे । राकेश शर्मा ने इस बात को इंगित करते दुःख प्रकट किया कि सदी के महान साहित्यकार के उनके गांव लमही में उनके स्मारक को अभिप्सित आदर से वंचित रखना हम हिंदी साहित्य प्रेमियों के लिए बहुत बड़ा दुर्भाग्य है । अब इस बारे में सोचना हम सबका कर्तव्य बन जाता है ।

तमिल कथाओं में यथार्थवाद से संबंधित कहानियों के अनुवाद प्रभावी रहे।वक्ताओं में रोचिका अरुण शर्मा न,विजयलक्ष्मीऔर डॉ प्रेमा ने तमिल कहानियों का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत किया । श्री तंगपाडियन ने प्रेमचंद के जीवन और उपलब्धियों का परिचय दिया।कार्यक्रम का संचालन श्रीमती पुष्पा आर ने किया।कार्यक्रम का समापन हिंदी साहित्य भारती की प्रदेश महामंत्री डॉ पद्मावती के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ