दीप हूँ जलता रहूंगा ,
तिमिर से लड़ता रहूंगा।।
अश्रुपूरित नयन हर तरफ ,
और खंडित हैं मन हर तरफ।
राह अब कोई दिखती नहीं ,
है निराशा सघन हर तरफ।
आस का सम्बल लिए मैं ,
रात भर चलता रहूँगा।।
रोशनी की नहीं खान हूँ ,
दोस्तो मैं न दिनमान हूँ।
मैं हूँ लघु पर निरर्थक नहीं ,
डूबते को मैं जलयान हूँ।
अपनी सीमा भर उजाला ,
अंत तक करता रहूँगा।।
-दिनेश त्रिपाठी शम्स, असम
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