अच्छे हैं लोग (ग़ज़ल) -हमीद कानपुरी
अपनी धुन में ही लगे रहते हैं लोग।
अब कहाँ मज़लूम की सुनते हैं लोग।
जो हक़ीक़त में न बदले जा सकें,
बेसबब के ख़्वाब क्यूँ बुनते हैं लोग।
कर्ज़ ले लेते दिखावे के लिए,
ज़िन्दगी भर कर्ज़ फिर भरते हैं लोग।
घूस रिश्वत लें करें मक्कारियाँ,
ज़ेब अपनी हर तरह भरते हैं लोग।
जब किसी की कुछ मदद करते नहीं,
किस तरह जनता कहे अच्छे हैं लोग।
-हमीद कानपुरी
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