दहकती रेत पर छोड़ा गया हूँ
पत्थरों की तरह तोड़ा गया हूँ
शाइरी यों ही नहीं टपकी है
धुले कपड़े-सा निचोड़ा गया हूँ
शब्द हूँ आत्मघाती बम-सा मैं
भरी संसद में जो फोड़ा गया हूँ
गिरेबाँ पकड़ने को हाथ उठ्ठा
तो पूरे बल से मरोड़ा गया हूँ
जो सूची बाग़ियों की बन रही है
नया अब नाम मैं जोड़ा गया हूँ
-कैलाश मनहर, मनोहरपुर(जयपुर)
1 टिप्पणियाँ
शानदार
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