नेता बहरा हुआ है (ग़ज़ल) -रमेश मनोहरा
ये चौराहा अंधेरे में डूबा हुआ है
हर समय ख़तरा भी इसका बना हुआ है
कितना भी चीख़ों आप पड़े न असर कोई
प्रजातंत्र में तो नेता बहरा हुआ है
घुस न सकते हो दरवाजें के भीतर आप
भीतर कुत्ते का सख़्त पहरा लगा हुआ है
जो भी आते हैं डूब जाते इसमें यहाॅं
सत्ता का कुॅंआ ख़ूब गहरा बना हुआ है
पसरी हुई ‘होरी’ की बस्ती में गरीबी
इसलिए भूख से हाहाकार मचा हुआ है
गुटों में गुट यहाॅं एक दूजे पर भारी
तभी तो सारा विकास रुका हुआ है
अब खोलो तो कैसे खोलो जुबान अपनी
खौफ से रमेश भी सदैव सहया हुआ है
-रमेश मनोहरा, जावरा
0 टिप्पणियाँ