आओ दीवाली कुछ ऐसे मनाए (कविता) -राजेंद्र गुलेच्छा ‘राज’
बाह्य उजाला बहुत कर दिया
अंतर्मन को भी जगमगाए
आओ दीवाली कुछ ऐसे मनाए।
असहिष्णुता का घुला जहर है
सहिष्णु थोड़े बन जाए,
आओ दीवाली कुछ ऐसे मनाए।
खुशियाँ छोटी छोटी बाँटकर
दीन-हीन को गले लगाए,
आओ दीवाली कुछ ऐसे मनाए।
आतिशबाजी महज आडंबर है
इसके विरुद्ध आवाज उठाए,
आओ दीवाली कुछ ऐसे मनाए।
सबसे बड़ा है संतोष धन
इस लक्ष्मी को दिल में बसाए
आओ दीवाली कुछ ऐसे मनाए।
सुखी हो सर्व जगत के जीव
ऐसी भावना दिल में रमाए
आओ दीवाली कुछ ऐसे मनाए।
पर्यावरण होता दूषित नित नित
स्वच्छता का अभियान चलाए
आओ दीवाली कुछ ऐसे मनाए।
नशे के गर्त में डूब रही इस
भावी पीढ़ी को बचाए
आओ दीवाली कुछ ऐसे मनाए ।
ज्ञान सरस्वती उपहारों को
घर घर में आओ पहुँचाए
आओ दीवाली कुछ ऐसे मनाए ।
-राजेंद्र गुलेच्छा ‘राज’,बैंगलोर
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