कब बिटिया तू बड़ी बनेगी,
कब आँखों की कणी बनेगी?
नाज करें तुझ पर घर वाले,
कब पापा की परी बनेगी?
कब गगन का चाँद बनेगी,
कब धरती पर इन्सान बनेगी?
खेल रही अभी गुड्डे-गुड़ियों से,
कब दो घर की शान बनेगी?
बड़ी बड़ी सब बातें करती,
कब पढ़ लिख विद्वान बनेगी?
छा जायेगी धरा- गगन तक,
कब मेरा अरमान बनेगी?
तुझमें देखूँ मैं जग सारा,
तुझमें ही संसार हमारा।
दादा दादी प्यार लुटाते,
तू ही उनका बनी सहारा।
भैया की प्यारी सी बहना,
माँ का बन रहती तू गहणा।
जब से तू आयी जीवन में,
ख़ुशियाँ हैं घर का हर कोना।
सास ससुर भी मात पिता हैं,
उनका सदा ही आदर करना।
संस्कार तुम्हारी पूंजी है,
उनका संरक्षण तुम करना।
तुम पर भार संस्कृति पोषण का,
इस पीढ़ी से नव पीढ़ी ढोने का।
तुम सभ्यता का आधार जगत में,
तुम पर गर्व तुम्हारे सृष्टि होने का।
पर कभी कभी डर लगता है,
मन रहता है सहमा सहमा।
तुम लक्ष्मी दुर्गा चामुण्डा भी,
फिर भी क्यों पड़ता है डरना?
-डॉ अ कीर्तिवर्द्धन,मुज़फ़्फ़रनगर
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