गन्ने की सोई (कविता) -रजनी शर्मा
खोपा कसते हुए फूलो,
गन्ना तोड़ कर लाती है ।
गन्ने की सफेदी तन पर
लिपट जाती है और,
जंगली फूल सी फूलो,
खिलखिलाती है .......
रस गंध में भर कर ,
रांधती है जब बोबो।
गुड़ जब पकता है,
गांव गुड़ सा हो जाता है......
चार गांव भी गुड़गुड़ाते हैं,
हवायें चुगली जो करती हैं........
फूलो और मिठास की,
गन्ने से झरते सुवास की..........
बिलवा गुड़ जब
बन जाता है भेला।
तब बगर जाता है उजाला,
फूलो के गांव, और घर में ..........
खदबदा जाते हैं,
मिट्टी से सने गांव.........
-श्रीमती रजनी शर्मा बस्तरिया, रायपुर छत्तीसगढ़
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