सुबह से ही डॉ. मल्होत्रा के घर भीड़ लगी हुई है, पुलिस, पत्रकार, मुहल्ले के लोग भरे हुए हैं। सभी लोग इस अनहोनी को देखकर स्तब्ध हैं, तथा तरह-तरह की चर्चाओं में मशगूल हैं। शहर के बीचोंबीच अत्यंत आधुनिक घर ‘‘प्रेम-सदन’’ आज विभिन्न चर्चाओं का केन्द्र बना है, डॉ. सुगन्धा मल्होत्रा ने अपने रिवाल्वर से आत्महत्या कर लिया है। लोगों को विश्वास नहीं हो रहा है, मरीजों में देवी की तरह पूज्य, अत्यंत हँसमुख डॉ. सुगन्धा को ऐसी क्या कमी थी, जो उन्हें आत्महत्या जैंसा जघन्य कार्य करना पड़ा। पत्रकार विभिन्न प्रकार से फोटो खींचने में लगे थे, पुलिस खोजी कुत्ते के साथ छानबीन में लगी, सभी सामान जप्त कर लिया गया था, जिससे कोई सबूतों से छेड़छाड़ न कर सके।
डॉक्टर की छोटी बहिन तथा माँ रो-रोकर बेहाल हो गई हैं, पिताजी चुपचाप मौन शून्य में देख रहे हैं, किकर्तव्य विमूढ़ से बैठे थे, दुनियाँ शून्य में घूम रही थी। लाड़ली बेटी चेतना शून्य पड़ी है, जिसकी आवाज से पूरा घर गूँजता था। मन तो चंचल है, उसे बँधन में नहीं बाँध जा सकता, वह मरकहे बैल कि तरह बार-बार पगहा तोड़कर मनमर्जी की जगह पहुंच जाता है, उसे डंडे की हाँक लगा-लगा कर लाना पड़ता है, कुछ ऐसी ही हालत सुगन्धा के पिताजी की हो रही है, विस्मृतियों के गर्त में वे बार-बार खो जाते हैं, उन्हें छोटी सी बच्ची की तोतली आवाज सुनाई पड़ती है- पापा! पापा! मैं बड़ी होकर डॉ. बनूँगी। आपको दवा दूँगी तब आपको कभी खाँसी नहीं आयेगी, मम्मी को भी कभी बुखार नहीं आयेगा। पल्लवी बड़ी होकर इंजीनियर बनेगी, आपके लिए बहुत सुन्दर शीशे वाला घर बनाएँगी। पापा हँस देते हैं, हाँ-हाँ तुम दोनों मेरा सपना पूरा करोगी। ठीक भी है, दो बेटियों के जन्म के बाद, माँ ने कितना कहा बेटा ये तो अपने घर चली जायेगी, एक बेटा तो होना चाहिए, उसी से घर की शोभा है, लेकिन मैं हमेशा यह कहकर टाल देता था कि माँ बेटियाँ बेटे से कहा कम हैं, ये मेरे दो बेटे ही हैं, इन्हें पढ़ा-लिखाकर योग्य बनाउंगा, यही मेरा नाम रोशन करेंगी, मेरे घर की शोभा हैं। आज के इस जमाने में तीन बच्चे की जिम्मेदारी उठाना आसान काम नहीं हैं। तुम्हें पता है पढ़ाई कितनी मंहगी हो गई है, बेटा-बेटी सभी को अच्छी शिक्षा दिलानी पढ़ती है। माँ मेरे तर्कों को सुनकर चुप हो जाती, लेकिन उसके मन में कहीं न कहीं यह कामना थी कि मेरे तीन लड़कों में से बड़े को ही बेटा नहीं है। वह तरह-तरह की मन्नतें करती रहती। कभी मेरी पत्नि से किसी विशेष मंदिर में जाने को कहती, वह भी मॉजी का मान रख लेती बाद में मुस्कुराती कि माँ के मन में पोते की विकट लालसा है, पोतियाँ तो उन्हें सुहाती ही नहीं।
खैर समय पंख लगाकर उड़ता गया। बड़ी बेटी सुगन्धा कितनी सुनदर थी, उतनी समझदार और बुद्धिमान भी, घर के कामकाज में माँ का हाथ भी बंटाती, तथा स्कूल के सभी गतिविधियों में सक्रिय रहती, उसकी प्रशंसा, आस-पड़ोस से लेकर परिवार-रिश्तेदार सब करते, हम पति-पत्नि अपनी परवरिश पर फूले नहीं समाते। पी.एम.टी. की परीक्षा टॉप करने पर उसका एडमीशन अच्छे कॉलेज में हो गया, वह घर से दूर हॉस्टल में रहने लगी। शुरू में माँ थोड़ा परेशान रही, धीरे-धीरे आदत पड़ गई, उसकी पढ़ाई अच्छे से चलने लगी, इधर छोटी बेटी पल्लवी भी इंजीनियरिंग में दाखिला लेकर पुणे चली गई, घर सूना हो गया, लेकिन मन में संतोष था कि चलो दोनों अपने-अपने मनपसंद कैरियर में लगी हैं। घर में अब शादी को लेकर बड़े भैया जोर डालने लगे, सुगन्धा बड़ी थी, उनकी बेटी उससे छोटी लेकिन ढंग की पढ़ाई न करने से वे चाह रहे थे कि उसकी शादी करके वह अपनी गृहस्थी संभाले।
कई बार चर्चा करने पर सुगना अक्सर टाल देती, अपनी पढ़ाई एवं कैरियर की दुहाई देती, पापा....अभी तो मुझे बहुत पढ़ना है, एम. एस. करना है, मात्र एम.बी.बी.एस. से आजकल कौन इलाज कराता है, आप क्या शादी का गाना गाने लगे। ताउजी से बोल दीजिए रश्मि की शादी पहले कर दें। और अंत में यही हुआ, अच्छा लड़का मिल गया तो बड़े भईया ने बेटी की शादी कर दी, शादी में सुगधा नहीं आ पाई उसके प्रक्टिकल चल रहे थे, दबी-दबी जवान में लोग बड़ी बहन से पहले छोटी की शादी की चर्चा करने से नहीं, चूके, खैर सामाजिक परिवेश ही ऐसा हैं, कुछ न कुछ तो टिप्पणियाँ होगी।
सुगधा पास हो गई, पूरे मन से पढ़ाई में जुट गई, और एम.एस. में एडमिशन मिल गया। अब धीरे-धीरे पढ़ाई पूरी होने को आई तो पापा ने शादी की चर्चा फिर बढ़ाई, सुगधा टालती रही, लेकिन धीरे-धीरे समय बीतता रहा, छोटी बहन की भी एक कम्पनी में जॉब लग गया। अब उसकी शादी की भी चिन्ता होने लगी। एक दिन सुगंधा ने माँ से धीरे से बताया कि उसके साथ का ही एक लड़का है, मल्होत्रा है, स्वभाव से बहुत अच्छा तथा शहर के प्रतिष्ठित डॉ. के घर का है, वह शादी करना चाहता है, हम दोनों एक दूसरे से प्यार करते है, माँ ने यह बात पिता से बताई, अपनी जाति का ना होने से थोड़ा विरोध भी हुआ, और अन्त में शादी को तैयार हो गये। बड़े धूमधाम से सुगन्धा की शादी हो गई। इधर पल्लवी के लिए भी अच्छा मिल गया तो उसकी भी शादी हो गई समय पंख लगाकर उड़ता रहा।
धीरे-धीरे पाँच वर्ष बीत गये, सुगन्धा के कोई औलाद न हुई, लेकिन उसकी प्रेक्टिस अच्छी चल रही थी, शहर के अच्छे डॉक्टरों में उसकी गिनती होने लगी। प्रत्येक दिन दर्जनों बच्चों को जन्म दिलाने वाली स्वयं के घर में बच्चे की किलकारी गूँजते न सुन सकी। इधर बीच में डॉ. मल्होत्रा का व्यवहार भी धीरे-धीरे बदलने लगा, एक समय जो सुगन्धा की हर बात मानने को तैयार रहते थे, अब हर बात काटने को तैयार रहते थे। इसी बीच शहर के बीचों बीच पॉश कॉलोनी में दोनों ने एक मकान बनवा लिया और उस ‘प्रेम सदन’ में अकेले रहने लगे। डॉ. साहब की क्लीनिक दूर थी, वे अब ज्यादा समय बाहर बीताने लगे, उनका इन्तजार करते-करते डॉ. सुगंधा कभी-कभी अकेले रात बीताने लगी। बात बढ़ते-बढ़ते मार पीट तक पहुँचने लगी। इस बात की जिक्र उसने कई बार माँ से भी किया, तथा तलाक की बात करने लगी थी। माँ ने उसे समझाया, सब ठीक हो जायेगा, इतनी जल्दी ऐसा निर्णय मत लो।
आत्महत्या करने से दो दिन पूर्व ही एक पत्र सुगन्धा ने भेजा था, जिसमें पति की ज्यादतियाँ तथा बच्चा न होने का ताना देने एवं और भी कई ऐसी बातें लिखी थी जो एक पत्नि के लिए असहय थी। और अन्त में लिखा था-‘‘मम्मी मैं थक गई हूँ’’ यह वाक्य उसके गहन वेदना को प्रकट कर रहा था। माँ ने फोन कर बात की तथा बताया कि तुम्हारी बहन भी आई हैं, उसके बच्चों के साथ आकर कुछ दिन रह लो, मन बहल जायेगा। उसने क्लिनिक से लौटकर आने पर आने की बात कही, यह उसकी आखिरी बातचीत थी। फिर न तो फोन आया और न ही कोई खबर, अन्त में उसके आत्म हत्या की ही खबर आयी।
सभी जैसे थे वैसे भागे, लेकिन अनहोनी तो घट चुकी थी, डॉ. सुगन्धा ने सभी बंधनों को तोड़ दिया था। पति शक के आधार पर गिरफ्तार हो गये, लेकिन अब कोई कर क्या सकता था। एक हँसता खेलता जीवन, नष्ट हो चुका था, सचमुच ऐसा लग रहा था कि वह बहुत थक गई हैं, चिर निद्रा में सो गई हैं।
-डॉ. माया दुबे, भोपाल
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