बस मुस्कुराने के लिए (ग़ज़ल)
तुम नहीं भेजे गये हो छटपटाने के लिए।
तुम जहां में आये हो बस मुस्कुराने के लिए।
किस तरह दूरी सनम से हो बताओ कम ज़रा,
ज़ेब में कुछ माल तो हो आने जाने के लिए।
सिर्फ़ पढ़ना ही नहीं काफी ज़रा समझो इसे,
है नहीं क़ुरआन ताकों में सजाने के लिए।
अब हिफ़ाज़त ठीक से करनी पड़ेगी देश की,
हर घड़ी तैयार दुश्मन है मिटाने के लिए।
ज़ुल्म दुनिया के सहेगा क्यूँ भला वो आदमी,
जो बना हरगिज़ नहीं हैं गिड़गिड़ाने के लिए।
-हमीद कानपुरी, कानपुर
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