मिन्नी मिश्रा का यह प्रथम लघुकथा संग्रह है, लेखिका ने स्त्री मनोविज्ञान को समझते हुए लघुकथाओं को बुना है। लेखिका की पुस्तक में स्त्री पात्र कहीं ना कहीं रूढ़िवादी परंपराओं से बाहर निकलने का प्रयास करते हुए दिखाई देते हैं।
कुछ ऐसी ही लघुकथाएं इस संग्रह में है। जैसे अंतर्जातीय विवाह, अपशकुन,अर्धांगिनी, अम्मा का फैसला, अहम इन लघुकथाओं में स्त्री रूढ़िवादिता से बाहर आती हुई दिखाई देती है। गजरे वाली रात लघुकथा में पति-पत्नी के दरम्यान नीरसता आ जाती है।
दोनों दायित्वों को निभाते हुए खुद को भुला बैठे थे ।यह कथा इस बात को दर्शाती है कि प्यार करने की कोई उम्र नहीं होती।
डिस्पोजेबल चमचे मौजूदा राजनीति पर करारा व्यंग्य करती है। वहीं होशियार घरनी लघुकथा ग्रहणियों के चुनौती पूर्ण जीवन को दर्शाती है। वह सीमित संसाधन में भी खुश रहने की कला जानती है।
इस संग्रह में कुल 83 लघु कथाएं हैं प्रकृति नटी, पेंशन, पत्थर पर दूब, सही खुराक, ईमान का पलड़ा, इंसानियत ही धर्म है , लक्ष्मी नारायण आदि लघु कथाएं अच्छी बन पड़ी हैं । उजाले की ओर लघुकथा शीर्षक को सार्थकता प्रदान करती हुई बिंबो के माध्यम से बुनी गई एक अच्छी लघु कथा है।
मिन्नी मिश्रा की लघुकथाओं में मिथिलांचल की बोली की झलक दिखाई देती है। संग्रह की भाषा सहज सरल है । यह लघुकथा संग्रह स्त्री की जमीनी हकीकत से रूबरू कराता प्रतीत होता है। मिन्नी मिश्रा का लघुकथा संग्रह उजाले की ओर पाठकों के लिए यह अच्छी किताब है मेरी ओर से मिन्नी मिश्रा को उनके प्रथम लघुकथा संग्रह की हार्दिक शुभकामनाएं...।
कृति- उजाले की ओर (लघुकथा संग्रह)
लेखक- मिन्नी मिश्रा
प्रकाशन- इसमाद प्रकाशन दरभंगा
मुल्य- 199
चर्चाकार- अर्विना गहलोत, नागपुर (महाराष्ट्र)
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