जिंदगी फिर भी जिंदगी रही ।
मिला तो इतना कि संभला नहीं,
लेकिन लगता है ,कुछ कमी रही।
क्या खो दिया है क्या पा लिया,
उम्र भर हयात यही सोचती रही।
क्यों डूबना होता भला हासिल,
मुकद्दर में लिखी तिशनगी रही।
-कमलेश कँवल उज्जैन
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