चले आज दूर
बहुत दूर
अपनी उन पगडंडियों पर
देखना हैं मुझे
तुम्हारे साथ आज फिर से
वहीं डूबता सूरज
और
छत पर जाकर
शरद पूर्णिमा का चाँद भी
और
छत पर जाकर
शरद पूर्णिमा का चाँद भी
चलना हैं मुझे उसी हरी घास पर
तुम्हारे संग
और
करना हैं अधूरी बातें
आज बहुत दिनों बाद पूरी..
बैठना हैं मुझे
तुम्हारे संग उसी बैंच पर
जहाँ बहुत सारी बातें
हमनें अधूरी छोड़ी थी
पूरी करनी हैं
साथ तुम्हारे बैठ कर..
बिना छाँव वाले पेड़ के नीचे
बिना छाँव वाले पेड़ के नीचे
लिखना हैं फिर से आज
तुम्हारे लिए
स्याही वाले पेन से
तुम्हारी वाली वहीं कविता
नाराज़ भी होना हैं
तुमसे हमेशा की तरह
पता हैं मुझे
बहुत अच्छी तरह
पता हैं मुझे
बहुत अच्छी तरह
मनाना आता हैं तुम्हें
चलो
आज फिर चले बहुत दूर
अपनी पुरानी स्मृतियों का
हाथ पकड़ कर
-डॉ सुरेन्द्र मीणा, नागदा (म.प्र.)
-डॉ सुरेन्द्र मीणा, नागदा (म.प्र.)
0 टिप्पणियाँ