आओ
बहुत दिन हुए इन
शिक़वे - शिकायतों संग गुजारते ज़िन्दगी
आओ अब
तल्ख़ रिश्तों को
मोहब्बत की धीमी आँच दें
उन्हें लजीज़ बना ले
डाल दे केतली में
शेष - विशेष,
किन्तु - परंतु के सारे मसाले
और लगा दे छोंक
बीते कल की यादों का
और लगा दे छोंक
बीते कल की यादों का
फिर देखना
कैसे स्वाद बदल जाएगा
रूह महक चहक उठेगी
कभी बैठो हमारे संग
पहले की तरह
आलथी -पालथी मार कर
और याद करो उस सर्द शाम वाली
काँच के छोटे गिलास में
मेरे हाथ की अदरक वाली चाय
और
बस
फिर कुछ मत सोचो
मेरे बारे में
हमारे बारे में
हम दोनों के बारे में......'
-डॉ सुरेन्द्र मीणा, नागदा
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