बन्द होती खिड़कियां हैं (ग़ज़ल)
फूल हैं तो तितलियां हैं
नित नदी से लहरियां हैं
देखते काँटे रहे यदि
सिसकियां ही सिसकियां हैं
जा रहा वह कर्मपथ पर
सामने तो भित्तियां हैं
हँस रहे हैं किन्तु उनकी
सब उजागर करनियां हैं
जो रहीं भरती कुलाँचें
अब कहां वे हिरनियां हैं
रक्त बहता है गली में
बन्द होती खिड़कियां हैं
है बुझा सा मन नलिन का
पर कहीं तो बत्तियां हैं
- डॉ नलिन, कोटा
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