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एक लेखक की मौत (लघुकथा)


पुस्तक लोकार्पण का कार्यक्रम चरम पर पहुंच गया। मंच पर विराजित सभी विद्वान अतिथियों ने नवोदित कवि की शान में बेहतरीन कसीदे पढ़े। पुस्तक चर्चा में शहर के नामचीन समीक्षक ने काव्य संग्रह की प्रशंसा करते हुए कहा "युवा कवि रत्नेश की कविताओं में जीवन का अनुभूत सत्य उजागर होता है। इनकी पुस्तक मौलिकता का जीवंत दस्तावेज है । निकट भविष्य में शोधार्थियों के लिए युवा कवि का यह काव्य संकलन मिल का पत्थर साबित होगा।" कुछ प्रायोजित अति उत्साहित छात्रों ने शोध हेतु नवोदित की पुस्तक का चयन भी कर लिया।

समारोह समाप्ति की घोषणा होते ही खचाखच भरी दर्शक दीर्घा में बैठे एक सफेद खिचड़ी दाढ़ी वाले बुजुर्ग लेखक लड़खड़ाकर दबी हुई आवाज में अचानक उबल पड़े "क्या खाक मौलिकता का जीवंत दस्तावेज है। आज से पचास साल पहले लिखी मेरी कविता को इस चौर्य कर्मवीर ने जैसी तैसी उतार कर अपने संग्रह में छाप दी। मैं आज भी पुराने अखबारों की कटिंग और पांडुलिपियां लिए घूम रहा हूं।" इतना कहकर बुजुर्ग लेखक ने अपने गंदे झोले से कागजों का बंडल निकालकर हवा में उछाल दिया।

लोकार्पण समारोह समाप्ति की सूचना होते ही दर्शक दीर्घा की भीड़ फर्श पर बिखरे पड़े पन्नों को पैरों तले रौंदती हुई बाहर निकल गई। मूर्छित बुज़ुर्ग की आंखों के सामने अंधेरा छा गया।

-रमेशचंद्र शर्मा, इंदौर

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