किया किसी ने ग़ुनाह लेकिन सज़ा किसी और को मिली है।
ग़ुनाह आंखें करें सज़ा दिल भुगत रहा कैसी ज़िन्दगी है।
तुम्हारी चाहत थी मुझ पे जब तो क़दम बढ़ा के बदल गये क्यूँ,
लगा के दिल तोड़ ही दिया जब बताओ ये कैसी आशिक़ी है।
जो इश्क़ करते उन्हें पता हो ये माइना भी तो आशिक़ी का,
लुटा भी देती है जां मुहब्बत ये इश्क़ में करती ख़ुदकुशी है।
शवाब भी है मगर मुहब्बत किसी का दिल भी जो ख़ुश हुआ तो,
दुआ तहेदिल से है जो मिलती मिला भी करती यूँ हर ख़ुशी है।
सुकून मिलता है नज़्म गज़लें सुना करें रोज़ जब हो मौका,
अदीब कहते मगर मुहब्बत बढ़ाती दिल में ये शायरी है।
ये शायरी ज़िन्दगी दिलों को फ़ना भी करती है आशिक़ी में,
इसीलिए शायरी है बेहतर हरेक दिल के लिए भली है।
-प्रदीप ध्रुव भोपाली,भोपाल (म.प्र.)
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