शहद की मिठास में नीम का कड़वापन भी छुप जाता है
इश्क़ का चश्मा चढ़ा हो तो फ़रेब नज़र नहीं आता है
वो जब- जब भी मिले है मुझसे अपना रुतबा साथ लाये
उसके लहजें में कभी कोई अपना पन नहीं आता है
इस तरह उनने अपने चेहरें पर चेहरा लगाया है
हर कोई उनके मासुम चेहरें से भरम खा जाता है
दिल लगाकर, दिवाना बनाकर, आंखों में आंसू दे जाना
कौन इस तरह मुहब्बत को पराया करके छोड़ जाता है
यादों के आइने में रोज इक तस्वीर उभरती तो है
बहती हुई आंखों के सैलाब में सब कुछ बह जाता है
"मन" में कोई कितनी ही दुआएँ कर ले बेवफा होकर
बेवफाई में दुआओं का असर भी खत्म हो जाता है
-मनीषा प्रधान 'मन', रीवा
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