रंजना मिश्रा |
भारतवर्ष को त्यौहारों का देश माना जाता है, यहां मनाए जाने वाले त्यौहार जीवन में खुशियां और उल्लास भर देते हैं, होली भी उन्हीं में से एक प्रमुख त्यौहार है, जो रंगों का त्यौहार माना जाता है और यह बुराई पर अच्छाई व झूठ पर सत्य की जीत का भी प्रतीक है।
युगों पहले हिरण्यकश्यप ने अपनी शक्ति के दम पर, अपने ही ईश्वर भक्त पुत्र प्रह्लाद को डरा धमका और भयभीत करके, स्वयं को ईश्वर मनवाने पर मजबूर करने का अथक प्रयास किया था, किंतु सत्य के पथ पर चलने वाले भक्त प्रह्लाद ने निर्भय रहते हुए सदैव अपने पिता को विनम्रता पूर्वक सत्य समझाने का प्रयास किया, पर उस दुर्बुद्धि पर तो असत्य और अविवेक की काली छाया मंडरा रही थी, उसने अपने पुत्र को मारने के अनेक असफल प्रयास किए और हर बार सत्य स्वरूप सनातन ईश्वर हरि ने उसकी रक्षा की। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने भी उसके इस निकृष्ट पाप कर्म में उसका सहयोग किया, उसने अपने प्राप्त किए हुए वरदान के बल पर, प्रह्लाद को मार डालने का, अपने भाई को आश्वासन दिया, वह प्रह्लाद को लेकर जलती हुई अग्नि में बैठ गई, क्योंकि उसे न जलने का वरदान प्राप्त था, किंतु हरि भक्त प्रह्लाद को मारने का विचार ही इतना पापपूर्ण था कि उसके आगे उसके पुण्यों से प्राप्त हुआ वरदान निरर्थक हो गया और वह जलकर भस्म हो गई, किंतु नारायण के प्रिय भक्त प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ। इसी दिन की याद में होलिका दहन मनाया जाता है, ताकि हमें स्मरण रहे कि कभी भी झूठ सत्य को नहीं हरा सकता।
होलिका दहन के दूसरे दिन रंग खेल कर हम धूमधाम से इस त्यौहार को मनाते हैं। इस दिन घर-घर गुझिया और कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं, सभी एक-दूसरे के घर होली मिलने जाते हैं,अबीर-गुलाल लगाकर गले मिलते हैं और गुझिया खाते हैं।
आजकल त्यौहारों के रंग फीके पड़ गए हैं, अब पहले जैसा उल्लास देखने को नहीं मिलता, न ही लोगों में एक दूसरे के प्रति इतना प्रेम रह गया है और ना ही त्यौहारों को मनाने का जोश, महंगाई इसका प्रमुख कारण है, दूसरा कारण है टीवी और इंटरनेट। सोशल मीडिया के इस जमाने ने अब पहले वाली खुशियां लगभग छीन ही ली हैं। पहले लोग टोली बनाकर रंग और पिचकारी लेकर घर-घर रंग डालने जाते थे, होली में खूब धूमधाम होती थी, पर अब तो पता ही नहीं चलता कि आज होली का त्यौहार भी है, बस प्रतीक मात्र बनकर रह गए हैं अब ये त्यौहार।
मथुरा, वृंदावन और बरसाने की होली पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है, यहां की लठमार होली को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को बरसाने में लठमार होली मनाई जाती है। परंपरा के अनुसार नंदगांव के हुरियारे होली खेलने बरसाने जाते हैं और बरसाने के हुरियारे नंदगांव। नंदगांव और बरसाने की हुरियारिनें इन पर लठ बरसाती हैं और ये हुरियारे ढाल से अपना बचाव करते हैं। वृंदावन में यह उत्सव बसंत पंचमी से ही शुरू हो जाता है, यहां 40 दिनों तक अलग-अलग तरीके से उत्सव मनाया जाता है, टेसू के फूलों से रंग तैयार किए जाते हैं, अबीर-गुलाल से पूरा वातावरण रंगीन रहता है और रसिया गाया जाता है।
अब तो कोरोना महामारी का खतरा चल रहा है, अतः हमें बहुत ही सावधानी पूर्वक रहने की आवश्यकता है, रंगों से बचना है और आपस में दूरी बना कर रखना है, जीवन को बचाना पहले जरूरी है, क्योंकि जीवन रहेगा तो ही त्यौहार मना सकेंगे। मास्क लगाकर, दूरी बनाकर और साफ-सफाई का ध्यान रखकर ही कोरोना वायरस के खतरे से बचा जा सकता है। इस वर्ष होली में हमें अपने घरों में गुझिया आदि पकवान बनाकर और टीवी पर होली से संबंधित गीत-संगीत सुनकर ही संतोष करना चाहिए। इस बार न तो रंग खेलें और ना ही गले मिलें, क्योंकि कोरोना का खतरा बहुत ही बढ़ गया है।
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