हमीद कानपुरी
आप के साथ जो चले होते।
दर्दो ग़म से नहीं घिरे होते।
फिर न शिक़वे शिकायतें होतीं,
दिल ज़रा भी अगर मिले होते।
कुछ ग़लतफहमियाँ न गर होतीं,
बीच में फिर न फासले होते।
मुल्क सरसब्ज़ फिर बड़ा होता,
ठीक गर फैसले हुए होते।
कोई उँगली नहीं उठाता फिर,
दूध के वो अगर धुले होते।
हम भी होते अगर नवाब कहीं,
साथ शतरंज खेलते होते।
गर ख़िजां झूम कर नहीं आती,
फूल चारो तरफ खिले होते।
इश्क़ हमने न जो किया होता,
फिर न शिक़वे कहीं गिले होते।
बेच देते हमीद जो ईमां,
शान से वो भी जी रहे होते।
दर्दो ग़म से नहीं घिरे होते।
फिर न शिक़वे शिकायतें होतीं,
दिल ज़रा भी अगर मिले होते।
कुछ ग़लतफहमियाँ न गर होतीं,
बीच में फिर न फासले होते।
मुल्क सरसब्ज़ फिर बड़ा होता,
ठीक गर फैसले हुए होते।
कोई उँगली नहीं उठाता फिर,
दूध के वो अगर धुले होते।
हम भी होते अगर नवाब कहीं,
साथ शतरंज खेलते होते।
गर ख़िजां झूम कर नहीं आती,
फूल चारो तरफ खिले होते।
इश्क़ हमने न जो किया होता,
फिर न शिक़वे कहीं गिले होते।
बेच देते हमीद जो ईमां,
शान से वो भी जी रहे होते।
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