प्रदत्त विषय पर अपने विचार रखते हुए संचालिका ने कहा कि प्रत्येक घटना और दुर्घटना के सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह के प्रभाव देखने को मिलते हैं। इस कोरोना महामारी ने हमारी सम्पूर्ण जीवन शैली को बदल दिया। हम वापस अपनी जड़ों से जुड़ गए, प्रकृति और ग्रामीण संस्कृति के निकट आने लगे। हमने सीमित संसाधनों के साथ संयमित जीवन जीना सीख लिया। हमारी मानवीय संवेदनाएं पुनः जागृत हो गईं। हम सबने इस महामारी से निपटने के लिए मिलकर इससे प्रभावित लोगों की सहायता के लिए हाथ आगे बढ़ाया। हमारा पूरा देश इस विकट स्थिति में एकजुट हो गया और यही कारण है कि हमने बहुत जल्दी वैक्सीन का निर्माण करके पूरे विश्व को अपनी एकता, शक्ति और सामर्थ्य का बल दिखा दिया। लेखकों और पत्रकारों ने अपने लेखों और सूचनाओं के माध्यम से जनता को जागरुक किया। वहीं इसका नकारात्मक पहलू यह रहा कि हमने अपने बहुत-से प्रियजनों, स्वास्थ्यकर्मियों, चिकित्सा कर्मियों और पत्रकारों को खो दिया। हमारी सामाजिक और आर्थिक स्थिति भी इससे बुरी तरह प्रभावित हुई। हमारे मजदूर भाइयों को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा।
शिवेन्द्र प्रकाश द्विवेदी ने अतिथि वक्ता राघवेन्द्र विक्रम सिंह का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया। राघवेन्द्र सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि कोरोना काल में वायरस का प्रभाव ग्रामों की अपेक्षा शहरों में अधिक देखा गया। गांव के लोगों का जीवन सादा होने से और प्रकृति के निकट रहने से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता शहरी लोगों की अपेक्षा अधिक मजबूत है। इस कोरोना काल में उन्होंने काफ़ी लेखन कार्य किया है और उनके आलेख विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने तेलंगाना राज्य में अनुवादकों द्वारा विभिन्न भाषाओं में किये गए साहित्यिक आदान-प्रदान की प्रशंसा की।
मुख्य वक्ता के रूप में शिवेन्द्र प्रकाश द्विवेदी ने कहा कि कोरोना काल में हर कोई इतना अकेला पड़ गया था कि वह केवल लेखकों एवं पत्रकारों द्वारा दी गई सूचनाओं पर ही निर्भर था। इस ऑनलाइन कल्चर ने श्रोताओं को मूक दर्शक बना दिया है, आपसी संवाद कम हो गया है। पत्रकारों की रिपोर्टिंग से सेंस गायब होता जा रहा है। पहले अधिकांश पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादक स्वयं अच्छे साहित्यकार होते थे। वे राजनीतिक दबाव में आकर अपने सिद्धांतों के साथ समझौता नहीं करते थे। उन्होंने वाजा के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह लेखकों एवं पत्रकारों का साझा मंच है। यह भारत में एक ऐसा पहला मंच है जो साहित्य से पत्रकारिता से खोई हुई अस्मिता को लौटा लाने के लिए स्थापित हुआ है।
डॉ.अहिल्या मिश्र ने अपने वक्तव्य में तेलुगु के प्रमुख अनुवादकों का नाम लेकर उनके द्वारा किये जा रहे कार्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में लेखकों तथा पत्रकारों ने वायरस से जूझने एवं स्थिति को सँभालने में विशेष योगदान दिया है। उन्होंने इस काल के सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों पक्षों पर संक्षिप्त में प्रकाश डाला। साक्षी हिन्दी वेब पत्रिका के पत्रकार एवं वाजा इकाई के संगठन सचिव के. राजन्ना ने कोरोना काल की स्थिति की गंभीरता के बारे में चर्चा की। उन्होंने बतलाया कि न केवल पुलिस, अस्पताल के कर्मचारियों और सफ़ाई कर्मचारियों ने जान जोखिम में डालकर अपना दायित्व निभाया, बल्कि रिपोर्टिंग पत्रकारों ने फ़ील्ड में जाकर, अपनी जान जोखिम में डालकर वायरस-प्रभावित लोगों की स्थिति को दुनिया के सामने रखा। इसके चलते कुछ पत्रकार भी कोरोनाग्रस्त होकर अपनी जान गँवा बैठे। थल सेना के सेवानिवृत्त लेप्टिनेंट कर्नल दीपक दीक्षित ने कोरोना काल में लोगों के जीवन में आए बदलावों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अब मास्क जीवन का अभिन्न अंग बन गया है और ये विभिन्न डिज़ाइनों में उपलब्ध हो रहे हैं।
अध्यक्षीय टिप्पणी देते हुए एन. आर. श्याम ने सभी वक्ताओं के वक्तव्यों का सारांश दिया। उन्होंने कहा कि वाजा तेलंगाना ने पूर्व में भी अच्छे कार्यक्रम किये हैं। संस्था द्वारा ज्वलंत विषयों पर कार्यक्रम होते रहने चाहिए। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में समाज में उथल-पुथल मचा था, व्यवस्था द्वारा इसके लिए उठाये गये अच्छे कार्यों के साथ उसकी ख़ामियों को भी लेखकों द्वारा रिकाॅर्ड करने की आवश्यकता है। उन्होंने इस कार्यक्रम की सफलता के लिए सभी साथियों को बधाई दी।
इकाई के महिला विभाग की अध्यक्षा डॉ. शकुंतला रेड्डी, उपाध्यक्षा डॉ. सुमनलता, तेलंगाना इकाई के उपाध्यक्ष बी. मुरलीधर के अलावा डॉ. टी. सी. वसंता, डॉ. सुरेश, नागुला श्वेता, चिरंजीव लिंगम, हेमा कृपलानी, आँध्र प्रदेश वाजा की महासचिव निर्मला देवी, रेखा व अन्य श्रोताओं ने इस कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। देवा प्रसाद मयला ने धन्यवाद ज्ञापित किया। सरिता सुराणा ने आभार व्यक्त कर कार्यक्रम के समापन की घोषणा की।
0 टिप्पणियाँ