आशु द्विवेदी |
ज़ख्म अपने दीखाऊं किसको।
हर एक के हाथ में है खंजर।
रक्षक अपना बनाऊं किसको।
हर किसी ने दुखाया है दिल मेरा।
हाले दिल सुनाऊं किसको।
मतलब से भरी इस दुनिया में।
अपना कह कर बुलाऊं किसको।
रुठ गई जब जिंदगी ही हमसे।
तो आखिर मैं मनाऊँ किसको।
आशु द्विवेदी |
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