भानु प्रताप मौर्य 'अंश' |
बहते जल प्रपात को देखा।
सुमनों को मुस्काते देखा।
विहगवृन्द को गाते देखा।
पुष्कर-तट पंकज-पुष्पों पर,
मधुकर - दल मँडराते देखा।
उगते देखा हमने रवि को।
उसकी मोहक सुन्दर छवि को।
घोर तिमिर छिप जाता भय से,
शशि को मान बढ़ाते देखा।
देखा हमने तुहिन - कणों को।
जो है लिपटे हुए तृणों को।
दृश्य प्रकृति का उषाकाल में,
जो भी जागा उसने देखा।
हमने नव प्रभात को देखा।
बहते जल प्रपात को देखा।
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