✍️राजीव डोगरा 'विमल'
सुनो ! मैं
फिर से लौट कर आऊंगा,
मिट्टी नहीं हूं
जो उड़ गया।
तूफ़ान हूं
फिर से थरथराता आऊंगा।
सुनो !
जीवन पथ पर
तुमने मुझे कभी
कुछ नहीं समझा
मगर वक्त के पन्नों पर
लिखा है साथ मेरा तेरा
मैं फिर से तुम्हें
अपना बनाने आऊंगा।
सुनो !
बहुत रुलाया है तुमने
मुझे बात-बात पर
पर तुम भी
लौट कर आओगे एक दिन
पलके भीगाकर।
*कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
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