✍️ब्रह्मानंद गर्ग सुजल
गिद्दों के पंजों में वो चिड़िया बहुत फड़फड़ाई होगी।
मजबूरी पे अपनी आँख उसकी लहू भर आई होगी।
कतरा कतरा जिस्म जब घर आया होगा।
सोचो उस माँ का कलेजा कितना थरथराया होगा।।
रक्त बूंद बन गिरा होगा बाप की आँख से भी।
तेज़ाब बन पानी बहा होगा भाई की आँख से भी।
पोस्टमार्टम के लिए गयी होगी उसकी लाश,
हाथ काँपे होंगे डॉक्टर के भर आई होगी आँख भी।।
मानवता नित होती शर्मसार।
मानव भीतर दैत्य लेता आकार।
सब हुए मौन जो कर रहे थे,
कंगना रिया सुशांत पर हाहाकार।।
हाथरस की हत्या पर बोले कौन।
दलित की बेटी पर सब हुए मौन।
डीएनए, दंगल होगा ना आरपार,
इंसाफ की आवाज उठाए कौन।।
हथिनी की मौत पर अपराधी केरल सरकार?
तो हाथरस के लिए जिम्मेदार नहीं है यूपी सरकार?
कहाँ है पालघर और कंगना पर दहाड़ता मीडिया?
अब सवाल पूछने में कैसे हुआ है लाचार?
न दंगल कहीं ना ठोकी गई ताल।
न पूछता भारत न कोई हल्ला बोल।
मानवता के मूल्य भरे बाजार होते जार जार,
न बैठती आपकी अदालत न होता आर पार।।
रात के अंधेरे में उसकी चिता जलाई जाती है।
बात ये उसके घर वालों से भी छुपाई जाती है।
जबरन लाया जाता है शव उसका घर वालों से,
यकीनन कुछ तो है साजिश जो मिटाई जाती है।।
*जैसलमेर
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