✍️टीकम चन्दर ढोडरिया
बिखरा हुआ
चहुँओर सुभग
रूप निहारें।।
अंबुज-मुख
लहराते कुन्तल
ज्यों दल-भृंग।
चन्द्र-रश्मियाँ
मलती उबटन
मृदुल-अंग।
मन हरते
काजर-कलित
दृग- कुआँरे।।
मेहंदी वाले
पग धुले ,झील में
संध्या उतरी।
निरख रहे
दल उडुगन के
बनें प्रहरी।
रजनी देखे
शशि-मुख अपना
नदी किनारे।।
घिरी यामिनी
खोले मनसिज नें
संकोची बन्ध।
अधर रचे
मृदुल देह पर
प्रणय-ग्रन्थ।
दृग-उनींदें
थकित देह पुनः
पिव पुकारे।।
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