✍️प्रेम बजाज
मात-पिता की मुरत आप हो
ईश्वर की सुरत आप हो ।
कोरा कागज़ होता मन हमारा ,
उस पर ज्ञान का पाठ लिखाते आप हो ।
जब सब दरवाज़े बंद हो जाते ,
नया रास्ता आप दिखाते ।
सदाबहार फूलों सा खिलकर महकाते आप,
ज्ञान का भंडार प्रदान करते आप ।
धैर्यता का पाठ पढ़ाते ,
संकट में हंसना सिखाते ,
नफ़रत पर विजय सिखाते ,
शांति का आप पाठ पढ़ाते ।
अच्छा - बुरा , पाप - पुण्य का
भेद सिखाते आप ।
जल करके दीप की भांति
ज्ञान की जोत जलाते आप ,
दे कर विद्या दान हमें ,
अज्ञान को हर लेते आप ।
गुमनामी के अंधेरों से निकाल कर
पहचान बनाते आप,
करते शुरवीरो का निर्माण
इन्सान को इन्सान बनाते आप ।
गुरू का महत्त्व ना हो कम
चाहे कितनी तरक्की कर लें हम ।
पड़ जाए अम्बर भी छोटा
लिखने जो बैठे गुरू की महिमा हम ।
*जगाधरी ( यमुनानगर )
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