✍️बीना रॉय
ऐ जिंदगी रफ्तार में हरदम न गुजरा कर
दौर-ए-क़रार दे और ज़रा तो ठहरा कर
अश्क़ों की गहरी नदी में नांव है उम्मीद की
बैठे हैं तन्हा ज़हन मे है यादों की भीड़ सी
भटक ना जाउं मैं किनारा नांव पे पहरा कर
ग़म के धूप संग दिया सितम का जो हवा
हिस्से के हिज़्र का भी करेंगे ना शिकवा
बन के ज़रा तबस्सुम इन लबों पे पसरा कर
जिंदगी तेरे वास्ते क्या से क्या कर गये
हद्द से गुज़र गये संवर के बिखर गये
मेरे वास्ते ऐ जिंदगी कभी तो संवरा कर
*गाजीपुर
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