✍️अलका 'सोनी'
अपनी मिट्टी की
वो सौंधी सी
खुशबू लिए, तुम
फिर आना
प्रीत की झीनी
चुनर लिए, तुम
फिर आना
मिले थे जहाँ हम
पहली बार
हाँ, वहीं
एक बार आना
कुछ लम्हें, कुछ पल
बातें करने को मुझसे
तुम हज़ार लाना
लेकिन
वो अंतर्द्वंद्व
चुप्पी, और अधूरापन
उन सबको
दूर पीछे
कहीं अपने छोड़ आना
पूजन में प्रयुक्त
कलश की भांति
भाव से भरकर,
पुर्णाहुति दे पाओ
जब तप को मेरी
तब तुम शिव
बनकर आना
तब तक,
एक नया रूप
नया जीवन पाने की
इस यात्रा में
हम अजनबी बन
बन जाते हैं
है कितनी दूरी
इन जन्मों की
काल के पंखों से
चलो नाप आते हैं…...
*बर्नपुर, पश्चिम बंगाल
अपने विचार/रचना आप भी हमें मेल कर सकते है- shabdpravah.ujjain@gmail.com पर।
साहित्य, कला, संस्कृति और समाज से जुड़ी लेख/रचनाएँ/समाचार अब नये वेब पोर्टल शाश्वत सृजन पर देखे- http://shashwatsrijan.com
यूटूयुब चैनल देखें और सब्सक्राइब करे- https://www.youtube.com/channel/UCpRyX9VM7WEY39QytlBjZiw
0 टिप्पणियाँ