✍️नितिन भारद्वाज
कवि कविता कमी नहीं,
यह जग भव संसार ।
कमी हमारी हम में,
कमी हमारी हम में,
रहित सद्भाव उदार ।।
कवि कविता सिमट रही,
आधुनिकता की छाँह ।
तपन मिटाने विवश हम,
बैठ तमस असद् असार ।।
चहुँ ओर नीति-न्याय रहित,
उष्ण तमस प्रचण्ड प्रसार ।
लोभ जन-मन प्रसर अनीति,
लगे थपेड़े तम बारम्बार ।।
अनीति अज्ञ क्षुदित मन,
तमस तपन असद् निर्वात।
तन सहित मन प्रतीक्षारत,
सत-शीतलता जन संचार ।।
स्वागत नीति मन उदित कर,
चाह प्रसन्नता हर्षोल्लास ।
तमस उष्णता तपन मिटाने,
सावन रहित मम मन उदास ।।
प्रसार उष्णता असद् तपन,
बैठ सत-शीतलता छाँह ।
सत् खेवैया बाट जोह,
पार असद् दे निज राह ।।
आ पुनर्मिल करें हम,
नव शीतलता संचार ।
त्यज उष्णता कपट मन,
कर सद्काव्य "सृजन-श्रृंगार" ।।
यह नीति 'नितिन' नव,
हो जन-जन मन प्रसार ।
सत्य,शौर्य,करुणा सहित,
भागे तम असद् संसार ।।
*गुना, म.प्र.
कवि कविता सिमट रही,
आधुनिकता की छाँह ।
तपन मिटाने विवश हम,
बैठ तमस असद् असार ।।
चहुँ ओर नीति-न्याय रहित,
उष्ण तमस प्रचण्ड प्रसार ।
लोभ जन-मन प्रसर अनीति,
लगे थपेड़े तम बारम्बार ।।
अनीति अज्ञ क्षुदित मन,
तमस तपन असद् निर्वात।
तन सहित मन प्रतीक्षारत,
सत-शीतलता जन संचार ।।
स्वागत नीति मन उदित कर,
चाह प्रसन्नता हर्षोल्लास ।
तमस उष्णता तपन मिटाने,
सावन रहित मम मन उदास ।।
प्रसार उष्णता असद् तपन,
बैठ सत-शीतलता छाँह ।
सत् खेवैया बाट जोह,
पार असद् दे निज राह ।।
आ पुनर्मिल करें हम,
नव शीतलता संचार ।
त्यज उष्णता कपट मन,
कर सद्काव्य "सृजन-श्रृंगार" ।।
यह नीति 'नितिन' नव,
हो जन-जन मन प्रसार ।
सत्य,शौर्य,करुणा सहित,
भागे तम असद् संसार ।।
*गुना, म.प्र.
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