✍️रविकान्त सनाढ्य
बाल -रूप की लुनाई लाड़ले की मोह रही,
गुलाबी आभा सों रच्यो वसन सुहावै है l
रंगरंगीली या सोभा कोनिखार देखो,
रूप को संभार अनगिन चढ़िआवै है l
मुरली मधुर साँवरे के कर विलसति,
देखि-देखि कै अनंद बढ़ि- बढ़ि जावै है l.
कहै रविकंत, आज लाल की छवि निराली,
जाहि कियो दरस वो भाग को सराहै है ।। 1।।
गदराये-गदराये गेन्दा के कुसुम- वस्त्र,
हरि तूने ने थरे, तेरी सुषमा अनूप है ।
मालाओं से मालामाल तू तो हुआ प्रभु मेरे,
मैं भी मालामाल हुओ, तेरो खिल्यो रूप है ।
मथुरा में द्वारिका में, गोकुल में नाथद्वारै ,
वृंदावन वारै बस एकै तुही भूप है।
डारि दे निगाह जरा करुना के ऐन मोपै,
तृसना को धाम यो गहन भव -कूप है ।। 2 ।।
कर में कमल-कली सोभित मृनाल युत,
दूजै कर लाल चटकीलो फूल न्यारो है l
तड़कीलो-भड़कीलो लाल आज ओपत है,
मुरली- मनोहर को रूप बड़ो प्यारो है l
गोपियों को प्राण धन,आयो बड़ो बन- ठन,
रस को अधार प्रेम प्रबल तुम्हारो है l
नैनन में छवि तेरी अमिट बसाइ लई,
कहै रविकंत, स्याम सखा तू हमारो है ll 3 ।।
*भीलवाड़ा ( राज.)
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