✍️डा. रघुनाथ मिश्र 'सहज'
बड़ी कृपा जगपाल की।
जय कन्हैयालाल की।
मधु-कैटभ को तुमने मारा।
असुरों से है जगत उबारा।
महाघमंडी कंश असुर को,
महामौत के घाट उतारा।
गुण गाएँ जग-ढाल की।
जय कन्हैयालाल की।
बसुदेव - देवकी बड़भागी।
उनसे जन की किस्मत जागी।
गिरिधर की महानुकंपा से,
कठिनाई खुद डर कर भागी।
आफत आ गई खुद काल की।
जय कन्हैयालाल की।
नंद -यशोदा पुलकित।
द्वापर युग सब हर्षित।
अभय हुए ब्रजवासी,
ब्रम्हाण्ड सारा चकित।
जय-जय-जय गोपाल की।
जय कन्हैयालाल की।
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