✍️रमाकान्त चौधरी
हर कमरे में खामोशी है, सूना- सूना आँगन है।
तुम बिन हाल बुरा है मेरा, खाली-खाली जीवन है।
जाने कब से तरस रहा हूँ , शोर तुम्हारा सुनने को।
कोई नही आता है अब तो, बिना बात पर हँसने को।
दीवारे रोती हैं ऐसे ,जैसे बरसे सावन है।
तुम बिन हाल बुरा है मेर, खाली-खाली जीवन है।
ब्लैक बोर्ड हैं खाली-खाली, डस्टर भी चुप रहता है।
चॉक बेचारा डिब्बों में , पड़े- पड़े दम भरता है।
धूल जम गई सीटों पर , हर कोने में सूनापन है।
तुम बिन हाल बुरा है मेरा ,खाली-खाली जीवन है।
चॉक चलाते दीवारों पर , तब तुम डाटे जाते थे]
कितने प्यारे लगते थे , जब रोकर चुप हो जाते थे]
धमा चौकड़ी से खिलता था, जो अब सूखा उपवन है।
तुम बिन हाल बुरा है मेरा, खाली-खाली जीवन है।
तुम क्या जानों तुम बिन शिक्षक, तन्हा-तन्हा रहते हैं।
कब आओगे नन्हे- मुन्नों, राह तुम्हारी तकते हैं।
सच पूछो तो तुमसे ही, लौट के आता बचपन है।
तुम बिन हाल बुरा है मेरा, खाली-खाली जीवन है।
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