✍️संजय वर्मा 'दॄष्टि '
नन्हें बच्चों के पाँव में
बँधी पायल
ठुमकने से जब बजती
कानों को दे जाती सुकून ।
दादा दादी की पीठ पर
नरम नरम पाँवों से
चलाने का चलन
अब कहा
जिससे कभी
दिनभर की थकान हो जाती थी
छूमंतर।
नन्हे बच्चों से
बिस्किट, चॉकलेट की पन्नियां
घरों में बिखरती।
टूटे बिस्किट के कणों को
दोस्त बनकर
चुगने आजाती चिड़िया।
दादी के तोतले मुख से
मीठी लोरियों की आवाज
सपनों की दुनिया में
परियों के देश ले जाती कभी।
अब कोलाहल में
सपने गुम।
सुबह नींद में आँखे मलते
बच्चों के मुस्कुराते चेहरे
सारे दिन घर मे
रौनक भर देते।
बचपन होता ही अनोखा
बचपन को हर कोई
खिलाना चाहता।
एक गोदी से दूसरी गोदी
हर एक के साथ फोटो
पूरा मोहल्ला दीवाना
बचपन होता ही
जादू भरा।
बेफिक्री आँखों में
नन्हें खिलौने
नन्हें दोस्त
नन्ही जिद्ध
नन्हें आँसू
बचपन में मिलते
बचपन लौट के नही आता
अब तो
बचपन के ख़्याल
एलबम में देख
सुकून पा लेते।
बच्चे मोबाइल टीवी देख
खुद ही सो जाते।
*मनावर(धार)
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