✍️नज़्म सुभाष
अपनी बेचैनी को ढोना पड़ता है
जो ना होना था वो होना पड़ता है
मेहनतकश की उजरत बस इतनी सी है
अक्सर भूखे - प्यासे सोना पड़ता है
ऐसे पल भी आते हैं इस जीवन में
हंसना - गाना रोना - धोना पड़ता है
किरची - किरची उम्मीदें बिखरीं सारी
धीरे - धीरे सबकुछ खोना पड़ता है
मुट्ठी भर दाने की खातिर दहक़ां को
ख़ून - पसीना खेत में बोना पड़ता है
जिस "छोटू" की खातिर थे कानून तमाम
उसको बरतन अब भी धोना पड़ता है
नज़्म सुनो!अब आंखों में आने दो नींद
कुछ पाने को ख़्वाब संजोना पड़ता है
*लखनऊ
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